पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

ऋपिदेव ऍी' ऋषिदेव-सज्ञा पुं० [सं०] एक बुद्ध का नाम [ये । ऋषिपचमी–सज्ञा स्त्री॰ [स० ऋषिपञ्चमी] माद्र शुक्ल पंचमी । इस तिथि को स्त्रियाँ व्रतोपवास प्रादि करती हैं। ऋपिपत्तन-संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल में वाराणसी के निकट एक वने का नाम । वर्तमान सारनाथ [को०] । ऋपिप्रोक्ता--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] भापपर्णी नामक पौधा [को॰] । ऋषिमित्र-- वि० [सं०] ऋपियो में सूर्य के समान तेजस्वी । उ०--- हंसि के कह्यो ऋषिमित्र । ग्नव बैठ राजपवित्र :---राम च०, पृ० १० । ऋपियज्ञ-सज्ञा ०[स०] ऋपियो के ऋण से मुक्ति पाने के निमित्त किया जानेवाला एक यज्ञ [को०] । ऋषिराई -- वि० [स० ऋषिराज] ऋपियों में श्रेष्ठ 1 कुपिराज़। ऋषिलोक-संज्ञा पुं० [स] सत्यलोक के पास का एक लोक [को॰] । ऋपिस्तोम-सज्ञा पुं० [सं०] १ ऋपियो की स्तुति या प्रायना । ३ एक दिन में नवाना यज्ञविशेप को०)। ऋपिस्वाध्याय--सज्ञा पु० [स]वेद का अध्ययन या प्रवृति[को०] । ऋपिहृदय-सज्ञा पुं॰ [स०] ऋपियों के समान शुद्ध दृदयवाला(को०]। ऋपीक-सज्ञा पुं० [स०] १ ऋ"प का पुत्र 1 २ ० 'ऋपिक' [फो०] । ऋपीश---वि० [सं०] ऋपियो में श्रेष्ठ । उ०-प्रासपास, ऋषीश | शोभित सूर सोदर सायं ।-राम च, पृ० १७६ । ऋषीश्वर- वि०[सं०] दे॰ 'ऋीन' । उ०-तरुनी यह पत्रि ऋषीश्वर की सी । राम च०, पृ० ८८ । ऋप-वि० [स०] १ वेडा शक्तिशाली । २ बुद्धिमान । चतुर ।। | ३ गता। जानेवाला (को०] । ऋप.- ज्ञा १ ० १ सूर्य की किरण । २ जलती हुई अग्नि ३ उल्का । मशाने । ४ ऋषि (को॰] । ऋष्टि--राज्ञा स्त्री० [सं०] १ ।। तलवार । २ शस्त्र 1 हथियार । ३ दीप्ति । काति । ४ एफ वाद्य (को०)। ५ दुग्रारी | तलवार (को॰) । ऋष्टिक-ज्ञा पुं० [ग] दणि का एक देश जिसका उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में है। ऋष्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ एक प्रकार का मग जिन पर श्येन होते हैं और जो कुछ काले रग का होता है । ५। ३ एक प्रकार का कोढ़ । ऋष्यकेतन, ऋष्यकेतु-मन ५० [सं०] अनिरुद्ध । ऋष्यगचा--सा सी० [१० प्यगन्धा] दे॰ 'ऋगंधा' । ऋष्यश-सज्ञा स्त्री॰ [१०] दे॰ 'ऋषप्रोता' (०) । ऋष्यप्रोक्ता --गुः क्षी० [स०] १ सेवावर । २ को 1 केवांच (को०) । ३ प्रतिपला (को॰) । अश्यजिह---गज पु० [ग] कोढ़ का एक प्रकार। ऋष्यमूक-राज्ञा पुं० [सं०] ददि स का एक पर्वत (२] । गिक - संज्ञा पुं० [स०] चितकार पर श्वेत पैरोबाचा मृग (०] । ऋष्यशृग--मः। पू० [म० रूपन्न एक गि जो विभाइक ऋगि ३ पुग्न थे । विशेप--इनको उत्पत्ति एप मग ने ही गई है। इनको एक छोटी मग थी जिससे उनका यह नाम पता 1 अग दैज़ के नोमाद राजा की पालिता कन्या ज्ञाता, जो दशरय की पुत्री थी, इन को ही गई थी। ऋग्व'-वि० [नं०] विशाल । उच्च । शिप्ट (ले) । ग्रुष्व-सा पु० १ इद्र । मग्नि [को॰] । ऋहत्--वि० [सं०] छोटा । दुर्वल [ये । ए—सस्कृत वर्णमाला को ग्यारहवीं और देवनागरी वर्णमाला का आठवाँ स्वर वर्ण । शिक्षा में यह सध्यक्षर माना गया है और इसका उच्चारण कठ और तालु से होता है। यह में और इ के योग से बना है, इसलिये यह कठतालव्य है। संस्कृत में मात्रानुसार इसके केवल दीर्घ और प्लुत दो ही भेद होते हैं, पर हिंदी में इसका ह्रस्व या एकमाथिक उच्चारण भी सुना जाता है। जैसे,—-एहि विधि राम सवहिं। समुझावा 1--तुलसी । 'भापा वैज्ञानिक इसे स्पष्ट करने के लिये इनके ऊपर एक टेढ़ी ‘ए’ की मात्रा *' लगाते हैं । पर इसके लिये कोई और सकेत नहीं माना गया है। मौके के अनुसार ह्रस्व पढ़ा जाता है। प्रत्येक के सानुनासिक और निरनुनासिक दो भेद होते हैं । ऍगुर --सज्ञा पुं० [हिं०] १० 'ईंगुर । चु०---अमरक के तनु ऍगुर कीन्हा । सो तुम फेरि अगिनि महैं दीन्हा ।—जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० ३२१ । के ढाबेंडाजीबंनाना= ऐचपेंच--सुज्ञ। १०[फा० पैच पा स० प्रति +1/अञ्च; प्रा० अइच +फा० पेंच] १ उलझाव । उलझन । घुमाव फिरावे । अटकाव । २ टेढ़ी चाल । चाल । घात । गूढ मुक्ति । क्रि० प्र०--फरना 1--जालना ।- होना। एजिन-सज्ञा पुं॰ [अं॰] दे० 'इजन' । उ०—पुतलीघर मे एंजिन । चलाते हुए देशो साहब की अपेक्षा छैन में हल चलाते हुए किसान में अधिक स्वाभाविक आकर्षण है ।-रस, १०, १४३ । ऍडवेंडा--वि० [हिं० चेंड़ा+अनु० ऐड़ा, या हि० ऍा+बैंडा] [स्री ऐड़ीबी] उलटा सीधा 1 अडवइ । मुहा०--ऍ) बॅडी सुनाना == भला बुरा कहना । फकारना । ऍडो-सज्ञा मो० [स० एपिडका प्रा० एप्रेजिमा] १ एक प्रकार का रेशम का कीड़ा। विशेप---यह कीड़ा अडी के पत्ते खाता है । यह पूर्वी बंगाल तया आसाम के जिलो में होता है। जो कोडे नवबर, फरवरी और मई मे रेशम घनाते हैं उनका रेशम बहुत अच्छा समझा जाता है।