पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१५३

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ऍडीर ६६७ मूगा से अडी का रेशम कुछ घट कर होता है। इसे अडी या एंडी भी कहते हैं। २. इस कीड़े का रेशम 1 ग्रंडी । मूगा ! ऐडी-संज्ञा स्त्री० [हिं०]२०' एड़ी' । उ०---क्या बुरे से बुरे दुखो को सह, ऍडियाँ ही विसा करेंगे हम चुमते, पृ० २३ ।। ऍड ग्रा--सज्ञा पुं० [हिं० ऐना] [स्त्री० अल्पा० एंड ई] रस्सी, कपडे ग्रादि का बनी हुया गोल मंडरा जिने गद्दी की तरह सिर पर रखकर मजदुर लोग बोझ उठाते हैं। गेंडरी । विड़ आ । विना पैद के बरतनों के नीचे भी एड प्रा लगाया जाता है जिसमें वे लुढ़क न जायें । ए-सज्ञा पु० [सं०] विष्णु । • ए—अध्य० [हिं०] एक अव्यय जिसे संबोधन या बुलाने के लिये प्रयोग करते हैं। उ०—ए । विधिना जो हमें हँसती अवे नेक कहीं उतको पग घार ।-रमखान (शब्द०)। । एG-सर्व० [स० एष, प्रा० एह यह । उ०—दुरे न निघरघट्यौ दिये ए रावरी कुवान । दिपु स लागति है बुरी, मी खिवी की लाल --विहारी र०, दो० ४८२ ।। एकक)--क्रि० वि० [ म० एक-अडू] निश्चये। इंकक । इक क । इ०-- ये गेहू के लोग व कातकी न्हान क ठानिहैं काल्हि एकक ही गौन 1 - भिखारी० ग्र॰, भा॰ १, पृ० २४५ । एकंग---वि० [अ० एक + अङ्ग= एकाग] ऋ३ ला 1 तनहा। एकगा--वि० [सं० एक+अङ्ग =ोर, तरफ) एक अोर का एकतरफा । एकगी'-सच्चा सी० [हिं० एफ +अगी] मुठिया लगा हुआ दो डेढ़ गज लवा लट्टूदार इंडा जिसे हाथ में लेकर लकडी खेलनेवाले लकडो खेलते हैं। इस इंडे से वार भी करते हैं और रोकते भी हैं। ऐकगी- वि० [सं० एकाङ्गी] एक शोर या पक्ष का । एकतरफा । एकागो । उ०—चद की चाह चकोर मरे अरु दीपक चाह जरे जो पतगी । ये सुन चाहैं, इन्हें नहि को ऊ, सो जानिए प्रीति की रीति एक ग ।--(शब्द०)। एड़िया--सच्चा पू० [सं० एकाडे] १. वह घोड़ा या बैल जिसके एक ही प्रकोप हो। २. वह लहसुन की गाँठ जिसमें एक ही | अडी हो । एकपुतिया लहसुने । एकड़िया-वि० एक अड़े का । एकतखु–वि० [सं० एव अन्त] जहाँ कोई न हो । एकति । निराला । सूना । जैसे-- एकांत स्थान में मैं तुमसे कुछ कहूँगा । उ०— आइ गयो मतिराम तह घर जानि एकत अनद से चंचल । - मतिराम (शब्द॰) । एकतर--दि० [सं० एकान्तर एक के अतरवाला। एक व्यवघनिवाला । उ०—बाँए। सुरग सोधि करि अणौ अाँखें नों रंग धागा । चद सूर एकतरि कीया भोवत बहू दिन लागी । - कवीर में २, पृ० १६० । २-१६ एक-वि० [सं०] १. एकाइया में सबसे छोटी और पहली सपा । वह सुक्ष्य। जिसमें जाति या समूह में से किसी अकेली वस्तु या व्यक्ति को वोध हो । २ अकेला ! एकता । अद्वितीय बेजोड। अनुपम । जैसे- वह अपने ढग का एक आदमी है। उ०—-प्रभु को देखौ एक सुभाई । अति गंभीर उदार उदधि हुरि, जान सिरोमनि राई ।-सूर०, १।८ । ३ कोई । अनिश्चित। किसी । जैसे--सवको एक दिन मरना है। उ०--एक कहूँ अमल कमल मुख सीता जू को, एक कहैं चंद्र सम अानंद को कद री }--रामच०, पृ० ५३ । ४. एक प्रकार का । समान । तुल्य । जैसे---एक उमर के चार पाँच लइके खेल रहे हैं। उ०—एक रूप तुम धाता दोऊ । -—मानस, ४८ ।। मुहा०.--एक अंक या एक प्रकि= एक वात् । छ। बात । पक्की बात । निश्चय । उ०—(क) मुख फेरि हँसै सब रवि रक । तेहि घरे न पैहू एक अक |--कवीर (शब्द०) । (ख) जाउँ राम पहि अायेसु देह । एकहि प्रक मोर हित एह ।-- मानस, २१७८ । एक अनार सी बीमार= किसी चीज के अनेक चाहनेवाले । एक अखि देखना= समान भाव रखना। एक ही तरह का वर्ताव करना । एक अाँख ने भीना = तनिक भी अच्छा न लगना । नाम मात्र पमद न आना। उ०— 'हमें यह बातें एक अाँख नहीं भाती, जब देखो बमचख मची हुई है।'–संर०, पृ० ३२ । एक मावा (वि०)= योडा। कम । इक्का दुक्का । जैसे---(क) सर लोग चले गए हैं। एक अधे अादमी रह गए हैं। (ख) अच्छा एक आध रोटी मेरे लिये भी रहने देना। एक एक =(१) हर एक । प्रत्येक । जैसे-एक एक मुहताज को दो दो रोटियाँ दो । (२) अलग अलग । पृथक् पृथक् ! जं मे---एक एक अादमी अावे और अपने हिन्से को उठा उठा च नती जाय । (३) बारी बारी । क्रमश । जैसे---एक एक लइका मदरसे से उठे और घर की राह ले। एक एक करके एक के पीछे दूसरा । धीरे धीरे । जैसे,—यह नुन नाव नो एक एक करके चलते हुए । एक एक के दो दो करना = (१) काम बढ़ाना । जैसे-एक एके के दो दो मत करो झटपट काम होने दो । (२) ध्यर्थं समय खोना 1 दिन काटना । जैसे-वह दिन भर बैठा हुआ एक एक के दो दो किया करता है । उ०—कहना, एक एक के दो दो कर रहे हैं और नही । —फिसाना०, भा० ३, पृ० २६० । एक शोर या एक तरफ किनारे । दाहिने या बाएँ । जैसे—'एक तरफ खड़े हो, रास्ता छोड़ दो ।' एक और एक ग्यारह करना = मिलकर शक्ति बढ़ानी । एक और एक ग्यारह होना = कई भादमियो के मिलने से शक्ति बढ़ना। एक कलम = बिल्कुल । सुत्र । एकदम । जैसे--(क) “साहब ने उनको एक कलम वरखास्त कर कर दिया' । (ख) 'इस खेत में एक कलम ईख ही वो दी गई। एक के स्थान पर चार सुनना = एक कडी वात के बदले चार कडी बातें सुनना । उ०—वरच एक के स्थान पर चार सुनने ही पर सन्नद्ध होते है।-प्रेमघन॰, भा० ३, पृ० २८५।