पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

एकजक्यूटिव आफिसर कई 5-सन पु० [सं०] एक प्रकार का कोड (को॰] । न हो । पुर्ण प्रभुत्वयुक्त । अनन्यशामिनयुक्त । निष्कंटक । उ०० क¢ ८–वि० [स०] एक बार जोता हुआ (वैत) (को०] । जरा मन दुख रहित तनु समर जिते जिनि कोउ। एकछत्र कफ वि० [सं० एककोशिन्] १. एक ही कोश का बना हुआ रिपुहीन महि राज कलपसत होउ ।- मानस, १।१६४।। | (प्राणी) [को०)। एकछत्र -- क्रि० वि० एकाधिपत्य के साथ । पूर्ण प्रभूत्व के साथ । , - "ज्ञा पुं॰ [स०] परब्रह्म ! परमात्मा [को०] । उ०---वैठ सिंहासन गरभहि गूजा । एकछत्र चारॐ बँड भूजा। * *-संज्ञा स्त्री० [हि० एक+गाछ+ई (प्रत्य॰)] वह नाव जायसी (शब्द॰) । जो एक ही पेड़ के तने को खोखला करके बनाई गई हो । एकछत्र--संज्ञा पुं० [स] शासन या राज्यप्रणाली का वह भेद एकग्राम- वि० [स०] एक ही गाँव में रहनेवाला । एक गांव जिसमे किमी देश के शासन का सारा अधिकार अकेले एक | का [को॰] । पुरुप को प्राप्त होता है और वह जो चाहे सो कर सकता है। एकचक्र'--संज्ञा यु० [सं०] १ सूर्य का रथ (जिसमे एक ही पहिया एकज–सच्चा पु० [सं०] १ जो द्विज न हो । शूद्र । २ राजा । ३. माना गया हैं) । २ सुर्य ।। सगा भाई कि० ।। एकचक्र—वि० १ एक चक्कावाला । एक पहियावाला (को०) । एकजु-वि० [ एक + एदे, प्रा० ज्ञव जेव] एक ही है एकमात्र । २ एक राजा द्वारा शासित (को०) । ३. चक्रवर्ती। उ० उ० -थली जो चरती मिरिगला वेधा एकज सौन् । हम तो | चल्यो सुभट हरिकेश सुवन स्यामक को भारी। एकचक्र नृप पथी पथ सिर हुरी चरंगी कौन --कबीर (शब्द॰) । जोग दोय 'भुज सरधनुवारी -गोपाल (शब्द०)। एकजटा-सा स्त्री० [स०] एक देवी । उग्रतारा (को०] । एकचक्रा- संज्ञा स्त्री० [१०] एक प्राचीन नगरी जो अारी के पास एकजहो---वि० [फा०] जो एक ही पूर्व ज से उत्पन्न हुए हो । सपिङ थी । यहाँ बकासुर रहता था । पा३ व लोग नाक्षागृह से बचकर | या सगोत्र । यहीं रहे थे और यही भीम ने दकानुर को मारा था । एकजन्मा--सेक्षा पु० [सं० एकजन्मन] १ शूद्र । २ राजा । एकचक्री–सज्ञा स्त्री॰ [सं०] वह गाडी जिसमें एक ही पहिया हो[को॰] । एकजवान--वि० [हिं० एक + फी० जान] एक विचार । एक मत । एकचर'–वि० [सं०] १ अकेले चरनेवाला । झुड में न रहनेवाला । २ एक वाक्य (को॰] । एक्का । २. अकेला । एकाकी (को०)। ३ एक समय यो एक एकजा–सच्चा स्त्री॰ [स०] सगी वहन [को०)। साय चनेवाला । एकजाई-वि० [फा० यक+जा=जगह, स्थान+हि० ई (प्रत्य॰)]एक एकचर--सज्ञा पु० १ जतु या पशु जो झुड़ मे नही रहते अकेले स्थान में सीमित । एक जगह का। उ०--7रे एकजाई ते तो चरते हैं, जैसे, सिह, सौप । २ गैंडा । ३ यति (को०) । हाजिर रहता है हर जा 1--भारतेंदु ग्र ०, भा॰ २, पृ० ५६१ । एकचश्म-वि० [हिं० एक फा० चश्म] एक अखवाला ।। एकजात--वि० [म०] एक माँ बाप से पैदा हुआ । सहोदर [को०] । काना (को०] । एकजाति'–वि० [स०] एक ही जाति यी वश का [को॰] । एकचश्म-सज्ञा पु० वह चित्र जिसमे चेहरे का एक ही पक्ष दीख । एकजाति-संज्ञा पुं० शूद्र [को०] । पडती है कि०] । एकजातीय–वि० [सं०] एक ही जाति का । समान जाति का । एकचारिणी--संज्ञा स्त्री॰ [सं०] पतिव्रता स्त्री [को॰] । उ०—-राजनीति विपयिणी छोटी बची एक जातीय तथा एकचारी-वि० [स० एकचोरिन्] दे॰ 'एकचर' । बहुजातीय समायो, उपदेशको ग्रौर समाचारपत्रों का प्रादुर्भाव एकचित--वि० [सं० एकचित्त] १ स्थिरचित्त । एकाग्रचित्त । इसी उद्देश्य से हुआ है ।- प्रताप० ग्र०, पृ० ३६७ । जैसे-'मैं कथा कहता हूँ एकचित होकर सुनो । २. समान एकजीक्यूटिव--वि० [अॅ० एग्जीक्यूटिव १ प्रवध विषयक । कार्य विचार का । एक दिल । खूव हिलमिला । जैसे-'तुम दोनो। सपादन सवधीं। अमलदरामद या कारवाई से सबध रखनेएकचित हो ।' वाला । २ प्रबंध करनेवाला । अमलदरामद करनेवाला । एकचित-सज्ञा पुं० १ एक ही बात या विचार पर दृढ रहनेवाली मिल । कार्य में परिणत करनेवाला । चित्त । उ०—जागि सुरति सुपन मिट गयऊ। दुइचित मेटि विशेप ---शासन के तीन विभाग हैं--नियम, न्याय और प्रबध । एकचित्त भयेऊ -कवीर सा०, पृ० १५३८ । २ एकाग्रता । विचारपूर्वक नियम निर्धारित करना मयत् कानून बनाना एकचेता--वि० [स० एकचेतस्] दे॰ 'एकचित्र' (को०] । अौर अावश्यकतानुसार समय समय पर उनका साधन करना एकचोवा--संज्ञा पुं॰ [फा०] वह खेमा या डेरा जिसमें केवल एक नियम या लजिस्लटिव विभाग का काम है। उन नियमो के चोव या वे भी लगे । अनुसार मुकदमो का फैसला करना या मामलों में व्यवस्था एकछत} -वि० [हिं० एकछत्र] दे॰ 'एकछत्र' ३०--रावन असे देनी न्याय या जुडिशियल विभाग का काम है । उन तेंतीस कोटि व एकछत राज करे ।घट०, पृ० २६५। नियम का दुख या अपनी निगरानी में पालन करना प्रवध पा एकछत्र'--वि० [सं० एकछत्र] विना और किसी के अधिपत्य एकजीक्यूटिव विभाग का काम है। का (राज्य) । जिसमें कही और किसी का राज्य या अधिकार एकजीक्यूटिव माफिसर--सधा पुं० [अ० एग्जक्यूदिव आफ़िसर] वई