पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१५७

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एकता ६७१ एकदिशा परिमाणातिक्रमण मठा हुअा तू वा लगा रहता है और दूसरे छोर पर एक क्रि० प्र०---करना ।—होना। खूटी होती है। इंई के एक छोर से लेकर दूसरे छोर की एकत्व-सज्ञा पु० [सं०] ऐक्य । एकता। उ०—'हमा अात्मा और खूटी तक एक तार वेवा रहता है जो मढे हुए चमड़े के परमात्मा का एकत्व अर्थात् अात्मिक सुख का जनक हमारा वीचोवीच घोहिया पर से होकर जाता है। तार को अंगूठे के प्यारा प्रेम तो कही जाता ही नहीं।'-प्रताप० ग्र', पृ० १०३ । पासवानी उँगली (लर्ज नी) से वज़ाते हैं । एकत्वभावन।---संज्ञा स्त्री[स०]जैन शास्त्रानुसार प्रात्मा की एकता एकताल - वि० [सं० एक+ताल} दे० 'एक' प्राब्द का मुहावरा का वितन। जैसे-जीव अकेला ही कम करता है और अकेला 'एकतार ।। ही उसका फल भोगता है अकेले ही जन्म लेता और मरता एकताला--संज्ञा पुं० [सं० एपताल बारह मात्रा का एक ताल । है । इयुका कोई साथी नहीं, स्त्रीपुत्रादि स यहीं रह जाते हैं । इसमें केवल तीन अघत होते हैं। खाली का इसमे व्यवहार यहां तक कि उसका शरीर भी यहीं छूट जाता है। केवल नहीं होता । एकताला का ववले का वौल यह है - धिन् उसका कमें ही उमका सायी होता है, इत्यादि बातों का धिन् धा, बा दिनता तादेत् धागे तेरे केटे घिन्+ता, धा ।। सोचना । एकतालिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] साल अर्थात् दो रागों से मिलकर एकदडा–संज्ञा पुं० [सं० एकदण्ड] कुश्ती का एक पॅच । | बने हुए रोगों में से एक है। विशेप--यह पीठ के इडे की तोड का तोड है । इसमें शत्रु जिस एकतालीस-वि० [स० एकचत्वारिंशत, पा० एकचत्तालीसt, और को कुदी मारता है, खिलाडी उसकी दूसरी शोर का हाय एकतालीस] गिनती में चालीस ओर एक । झट गर्दन पर से निकल कर कुदे में फंसा हुआ हाथ खूब जोर एकतालीस-सुज्ञा पु० ४१ की संढ्या का बोध करानेवाला अक जो से गर्दन पर चढाता है। फिर गर्दन को उखेडते हुए पुट्ठे पर से | इस प्रकार लिखा जाता है—४१ ।। लेकर टांग मारकर गिरता है। वोड-विवाह के तरफ को एकति -क्रि० वि० [• एकत्र दे० 'एकत' । उ०—वजन मीन टॉन से भीतरी अडानी निलाडी की दूसरी टाँग पर मारे और कमल नरगिस मग सीप भौंर र साधे । मनु इनके गुन ए कति दूसरी तरफ के हाथ में टाँग को लपेट कर पिछली बैठक करके करिक अजन गुन दै वाधे !-भारतेंदु ग्र०, भा० २, खिलाडो को पीछे सुलाने को तोड़ कहते हैं। पृ० ४१४ ! एकदडो–सुज्ञा पुं० [सं० एकदण्डिन्] सन्यासियों का वह वर्ग विसको एकतीर्थ-संज्ञा पु० [स० एकतीथिन्] वह जिसने एक ही आश्रय उपाधि हस है कि०] । में एक ही गुरु से शिक्षा पाई हो । गुरुनाई। एकदत'--वि० स० एक् दन्त] एक दांतवाला । उ०—'अादिदेव एकतीर्थी-वि० १ एक ही तीर्थ में नहानेवाला। २ एक ही श्री एकदेते गणेश जी को प्रणाम करके श्री पुष्पदंताचार्य ने | संप्रदाय, विचार या पय को माननेवाला (को०)। महिम्न में जिनकी स्तुति को है' 1--प्रताप० ग्र, पृ० १६३ ।। एकतीस–वि० [स० एकत्रिश, पा० एकतीसा] गिनती में तीस एकदत--सज्ञा पुं० [स० एकदन्त] गणेश । और एक । एकदत—वि० [स० एकदन्तक] [जी० एकदन्तकी एक दाँतवाला । एकतीस-सज्ञा पुं० ३१ को सख्या का वोधक अक जो इस प्रकार जिसके एक दाँत हो । | लिखा जाता है--३१ । एकदंष्ट्र--संज्ञा पुं॰ [म०] गणेश (को॰] । एकृतभोगो मित्र--संज्ञा पुं॰ [सं०] कौटिल्य मत में वह वश्य मित्र एकदरा--संज्ञा पुं० [हिं० एक+फा० दर= द्वार] एक दर का जो एक साथ एक ही को लाभ पहुंचा सके, अयत् अमित्र दालान । को नहीं । उभयतोमोगों का उलटा । एकदस्ती--सच्चा स्त्री० [हिं० एक+फा० दस्ती = हथि संवची] कुश्ती एकत्य(५)---वि० [सं० एकस्य] दे० 'एकत्र' । का एक पॅच ।। एकत्र--क्रि० वि० [स०] एकट्ट्ठी । एक जगह । उ०--- वक्षस्थल विशेष—इसमें खिलाडी एक हाथ से विपक्षी का हाथ दस्ती से पर एकत्र घरे, समृति के नव विज्ञान ज्ञान ।- कामायनी, खींचता है और दूसरे हाथ से झट पीछे से उसी तरफ की टोग पृ० १६६।। का मोजा उठाती हैं और भीतरी अडानी से टाँग मारकर मुहा०—एकत्र करना = बटोरना। संग्रह करना । उ०-सुखसाधन गिराता है। एकत्र कर रहे जो उनके संबल में हैं ।--कामायनी, पृ० १२ । एकदा–क्रि० वि० [सं०] एक समय । एक वार । उ०--जोरि एकत्र होना =जमा होना । कट्ठा होना । जुड़ना । जुटना। तुरंग रथ एकदा र वि न लेत विश्राम ।-शकतला, पृ० ६३ । उ०—दई एकत्र इम मेरी अगलतिका में ।-नहर, पृ० ६० । एकदिशा परिमाणांतिक्रमण--सम्रा पुं० [स] जनशास्त्रानुसार दिशा एकत्रा- सुज्ञा पुं॰ [सं० एकत्र कुल जोइ । मीजान । टोटल । संवधी बाँधे नियम का उल्लंघन करना । एकत्रिशत्-वि०, संज्ञा पुं० [सं०] दे० एकतीस' । विशेप---प्रत्येक श्रावक का यह कर्तव्य है कि वह नित्य यह एकत्रित--वि० [सं० एकत्र से हि० ]जो इकट्ठा किया गया हो या जो नियम कर लिया करे कि ग्राज में अमुक अमुक दिशा में इकट्ठा हुअा हो । जुटा हुमा । सगृहीत । उ०—और लोग 'मी इतनी इतनी दूर से अधिक न जाऊँगा। जैसे किसी थावक ने एकत्रित थे, कॅस बातें होती थीं !--प्रेम०, पृ० १८ । यह निश्चय किया कि आज मैं १ कोस पुरव, १३ कोन पच्छिम