पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१७१

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एहवा कहि रमानिवासा । हरपि चले कुमज रिपि पासा -- एषणिकी--सज्ञा स्त्री० [सं०] मुर्राफ की तराजू [को०] । मानस ३।६ (क) । एपणी'—संज्ञा झी० [सं०] १ दे० 'एषणिका'। २ लोहे की विशेप–इस पद का प्रयोग प्रार्थना को स्वीकार करने या माँगा सलाखें । लोहशाला का [क] । हुआ। बग्दान देने के ममय होता है । एपणी-वि० [सं० एपणिन्] चाहने या इच्छा रखनेवाला (को०] । एव–अव्य० अौर । ऐसे ही और। इसी प्रकार और। एपणीय--वि० [सं०] चाहने या प्राप्त करने योग्य को॰] । | एव---ग्रव्यं० [स०] १ एक निश्चयार्थक शब्द 1 हीं। उ०--वलि एप-सज्ञा स्त्री॰ [स०] चाह । अकाक्षा । इच्छा jि । मिम देखे दवता कर मिस मानव देव । मुए मार सुविचार हुत एपिता--वि० [सं० एपितृ] चाहनेवाला । अभिलाषुक । इच्छा स्वाथ साधन एव 'नुलसी ग्र०, पृ० १३२ । २ भी । करनेवाला [ो]। एवज-सज्ञा पुं० [अ० एवज] १. वदला । प्रतिफल । प्रतिकार । एपी--[स० एपिन्] ३ ‘एपिता'। | प वर्तन । वदना । एष्टि--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] चाहना । इच्छा (को०) । क्रि० प्र०-- देना । उ०—‘और मैं उसका भी एवज दिया चाहता एष्य--वि० [स०] १ चाहने योग्य । प्रस्तुत करने योग्य । ३. या' 1- वीनिवास ग्र०, पृ० ३४३ --मिलना ।---लेना। निरीक्षण करने योग्य (को०] । ३ स्थानापन्न पुरुप । दूसरे की जगह पर कुछ काल तक के लिये एसिड-सज्ञा १० [अ०] तेजाव । अम्लक्षार 1 द्राव । का काम करनेवाला आदमी । एसीवादी--मज्ञा पुं० [अ०] जैन संप्रदाय ने बाणव्यतर नामका यौ०--एवज मु प्राज= अदल बदल ।। देवगण के अंतर्गत एक देवता । एवजी संज्ञा पु० [फा० एवजी] स्थानापन्न पुरुप । दूसरे की जगह एसेंब्ली--सज्ञा स्त्री० [अ०] १ सभा । परिपद् । मडल । मजलिस । | पर कुछ काल के लिये काम करनेवाला अादमी। व्यवस्यापिका स मा । जैसे—लेजिस्लेटिव एसवनी । २ सुमह । एवजीदार-वि० [फा० एवजी+दार प्रत्य०)] दूमरे की जगह पर जमाव । मजुमा । कुछ समय के लिये काम करनेवाला । स्थानापन्न । उ०---जै | एसेंस--संज्ञा पुं० [अ०] १ रासायनिक प्रक्रिया से खौत्रा हुमा फलो दिन काम न करे तै दिन पूरी तनख्वा एवजीदार को दें। फूलो की सुगध अादि का सार । पुष्पसार । अतर । २ वनस्पति प्रताप० अ ० पृ० ४६१। | अादि का खीचा हुअा सार । अरके । ३ सुगध । ४. रूह । एड - संज्ञा पु०[देश॰] दे॰ 'रेवड' । उ०—अडवले अघोफर इ, एस्टिमेट -सज्ञा पुं० [अ०] अदाज । वखमीना। अनुमान । जैसे,— एवड महि ग्रसन्न --डोला०, ६०, ४३९।। ‘इसमें कितना खर्च पडेगा, इसका एस्टिमेट दीजिए' । एवालq----संज्ञा पुं० [स० विपाल] गडेरिया । अभीर । उ०---- क्रि० प्र०——देना 1--वैताना ।—लगाना । ढोलइ करहू वि भासियङ, देखे वीस वसाल । ऊँचे थलइ ज । एस्परांटो, एस्परातो---सेवा दे॰ [अ०] यूरोप आदि के प्रचलित एक एकलो बच्चालइ एवाल | ढोला० ६०, ४३५ । नवीन कल्पित अतरराष्ट्रीय भाषा। उ०—‘सरस्वती की किसी एवेन्यू सज्ञा पुं० [अ०] १ वह स्थान जो वृक्ष, लता आदि से । पिछली सख्या में हमने एस्पराट भापा के विषय में कुछ लिखा आच्छादित हो । कुज । २ रास्ता ! मार्ग । जैसे,—चितरंजन है ।-सरस्वती, अप्रैल, १९०५, पृ० १२१ ।। एवेन्यू । एशिया--सुज्ञा प० [यू ० (यह शब्द इबरानीशब्द 'अशु' से निकला] एह स र्व० [सं० एप., अप० एह] यह । उ०—स्वारथ परमारथ है जिसका अर्थ है 'वह दिशा जहाँ से सूर्य निकले अर्थात् पूर्व रहित सीताराम सनेह । तुलसी सो फल चारि को फल हमार पाँच वडे भूखंडों में से एक भुबड जिसके अंतर्गत भारतवर्ष, मत एह ।—तुलसी ग्न १, पृ० ६१ । फारस, चीन, ब्रह्मा, इत्यादि अनेक देश हैं। एह-वि• यह । एशियाई-वि० [यू० एशिया+हि० ई (प्रत्य॰)] एशिया का । एहतमाम–सज्ञा पुं० [अ० एहतमाम] १ प्रबध । ३. निरीक्षण । एशिया सबबीं। उ०—हिट मुस्लिम एक हैं दोनो। यानी ये एहतियात -सज्ञा स्त्री॰ [अ॰१ सावधानी । होशियारी । चोकसी। दोनो एशियाई हैं ।—कविता को०, भा० ४, पृ० ६४३ । बचाव । २ परहेज । यो०--एशियाई रूम । एशियाई रूस । एसियाई कोचफ । एहतियातन- वि० [अ०] होशियारी से। एहतियात के तौर प । एपण-सृज्ञा पु०म०१ इच्छा । अभिलापा । चाहनी । २ लेने की सुरक्षा की दृष्टि से । यत्न करना । पाने का प्रयास करना । ३ दवाना। ४. रोग एहतियाती--वि० [अ०] एहतिया। सध। जिसने हात हा की जाँच करना । ४ लोहे का बाण (को०] । खयाल रहे। हिफाजत अवधी [को०] । एपणा--राज्ञा स्त्री॰ [सं०] [वि० एपणीय, एपंतव्य] १. इच्छा। | यौ–एहतियाती कारवाई - घर से बचने के लित्र की जानेवाली काक्षा। अमिलोपा । उ०—सबके पीछे लगी हुई हैं कोई | काररवाई। हिफाजत संवधी व्यवस्था । व्याकुल नई एपणा |--कामायनी, पृ० २६६ । २. याचना ।। एहतिलाम-सज्ञा पुं० [२०] स्वप्नदोष (को०) । माँगना (को॰) । एपणासुभिति----संज्ञा स्त्री० [सं०] जैन में ४२ दोपरहित वस्तुओं एहवा --वि० [सं० एप, अप० एह+वः (प्रत्य०) 1 T faa 4 एवी] ३० 'सा' । उ॰--(क) पिप खोडरा एहवा, जेहा के आहार का नियम । दूषणरहित माहार की ग्रहण ।