पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१७२

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एहसान काती मेह । डबर अति दाखबर, ग्रास न पुरइ देह!-ढाला० दू० ३३९ । (ख) एक उजायर कलह एवा, भायी सहू अखाढसिधै |–३ लि०, ६० ७८ । | एहसान--सज्ञा पुं० [अ०] वह माव जो उपकार करनेवाले के प्रति होता है । कृतज्ञता । निहोरा । ३०-~-के हो हुअा एहसान कौन सा किसी व्यक्ति पर भरा |--पथिक, पृ० ६४ । २. उपकार । मलाई । नेकी । एहसानफरामोश-वि० [अ० एहसान + फर० फरामोश} [संज्ञा स्त्री० एहसानफरामोशी] कृतघ्न । अकृतन । उ०----पर यह एहमान फर मौरी अदिमी मोव) चला गया १०-२०, पृ॰ ६०० ।। एहसानमर्द- वि० [अ०] निहोर। माननेवा। उपकार माननेवाला कृतज्ञ । एहति]—संज्ञा पुं॰ [अ॰] दे॰ 'अहाता' । एहि-सवं० [हिं० एह] 'ए' का यह रूप जी हिदी की विनापा गौर वोलियो में इस विभवित के पहले प्राप्त होता है । उ०--- एहि महू रबुपति नाम उदारा |--मनन ११० । एहो--अध्य० [हिं० है, हो] सुबोधन शब्द । है । ऐ । ऐ-सस्कृत वर्णमाला का बारहवाँ अौर हिदी या देवनागरी वर्णमाला अपने जिम्मे लेन । जिसका दृपया अपने यहाँ वाँकी हो का नव वर वर्ण । इसका उच्चारण स्थान कट और उसका कर्ज अपने जिम्मे लेना । योढना । ग्रोटना । जैसेतालु हैं ! अव प्रा प इनसे अपने रुपए का ताजा न करे मैं उसे अपनी विशेप-हिदी में इसका उच्चारणु द ढग से होना है। मस्कृत ओर ऐ न लेता हैं । ३ अनाज की भूमी अलग करने के या तत्सम शब्दो मे ती ‘ए’ का उच्चारण सस्कृत के अनुसार ही लिये फटकारना । कुछ 'इ' लिए हुए 'आइ' के ऐसा होता है जैसे ऐरावत' । पर ऐ चाऐ ची--मज्ञा स्त्री॰ [हिं० ऐ चना] वींचा चीनी । ऐ चातानी । हिंदी शब्दों में इसका उच्चारण ‘य' लिए हुऐ ‘अय्' की तरह उ०--(क) दस वटपर वाट पारित नित इद्रजाल वनराय । होता है, जैसे--'पैसा'। यह प्रवृत्ति पश्चिम की है। पूरब तिनकी अति ऐ वाऐ ची में परि पुनि कछु न बनाय -याकर की प्रातिक वोलिया में या मराठी मापी अादि के हिदी ग्र ०, पृ० २६६ । (द) अँ चरा की है चाची, शैगिया की उच्चारण में 'ऐसा' में भी ‘ए’ का उच्चारण सस्कृत ही वैचावंची, छतियों की छुवा थुई मान चुटि बाई ।--गग०, की तरह रहता है। पृ० ७६ । ऐ-अव्य॰ [स० अये या ऐ] १. एक अव्यय जिसका प्रयोग अच्छी एचालैंची–मुज्ञा स्त्री० [हिं० ऐचना+खंचना]ऐ चातानी । ऐ चाहे ची तरह न सुनी या समझो हुई बात को फिर से कहलाने के ३०----ए चाबची से सबहिन के परिगै भयकाभो !-—जग० लिये होता है । जैसे-एँ, क्या कहा ? फिर तो कहो। २ श०, पृ० ७७ । एक अव्यय जिससे अाश्चय सूचित होता है। जैसे--हैं। ऐचाताना--वि० [हिं० ऐ चना+तानना [वि॰ स्त्री० ऐ चातानी] यह क्या हुआ ? • जिनकी पुतली देखने में दूसरी ओर को सुचना हो । जो ऐ गुद--वि० [सं० ऐन, इगुदी वृक्ष से उत्पन्न । इगुदी संबधी। देउने में उधर देखना हुआ नहीं जान पड़ता जिधर वह बास्तव | इगुदीयुक्त [को०] ।। में देखता है । मॅगा । उ०—सौ में फुर्ती सहन में कानी । ऐ गुद-संज्ञा पुं० इगुदा के फल की गिरी [को॰] । सवा लाख में ऐ चाताना ! हे चाताना म्है पुर । कने हैं ऐ ग्लो-वि० [अ०] अँगरेजो से सवधित । इगनेड से लबवित । रहियो सियारे । यो०- ऍग्लोइडियन =(१) वह जो 'मारत, वर्मा आदि म ऐ चातानी--सुज्ञा स्त्री० [हिं० ऐ चना+तनना चाखची। घनीटा उत्पन्न हो । (२) यूरोपीय और एशियाई दपति की संतान । घसटी । पनी अपनी और लेने का प्रयन् । उ०-२क इस ऐग्लोवर्सीज । ऐलोवनस्यूलर स्कूल = वह पार्टशाला जहाँ नाम विना वह कानी हो रही है चातानी ।---कवीर श०, अँगरेजी तया देशी दोनों मापाग्रो की पढ़ाई हो । ना० १, पृ॰ ६८ । ऐ चषु }----सज्ञा जी० [स० अव+1/अञ्चू, हि० खींचना, या पेच ऐ चीला- वि० [हिं०] लचकदार । लचीला । खिच तकनेवावा । १० हि० हीचना खिचाव । तनावे । ऐंठ। उ०- कसदलन खिचने तायफ। पर और उत, इते वाहित जोर । चलि रहि सके न स्याम' ऐ छना--क्र० स० [म० प्रन्छिन = चुनना] १ झाडना । साफ चित ऐच ,गी दुदु योर |--भिखारी प्र ०, मा० २, पृ० ३६ । । करना। २ (बालों में) कधी करना । ॐछन । उ०—भोरहि ऐ चना--क्रि० स० [सं० प्रवाञ्चन हि० खींचना, पु० हि० हीचना] १ मातु पठायति लालन नवल कके खुवाई । पछि शरीर, ऐ छि खीचना | तानना । उ०—(क) नीलावर कर ऐ चि लियो हरि कारे कच भूपन पट पहाई !---रघुराज (शब्द०) । मनु बादर ते चुद चेजारयो ।---मुर० १०1८०७ । (छ) रह्यो ऐ ठ--सज्ञा लो०f हिं० ऐ ठन]१ अहकार की चेष्टा । अकडे | ठसके। ऐ चि, अतु न लहै अर्वाध दुसासनु वीरु । आलो, बाढ़ त विरहू २ गर्व । घमड । उ०—पर अशा की और कहाँ तक ऐ३ ज्य पंचोली को चीम् ।--विहारी २०, दो० ४०० । २. सहू में साकेत, पृ० ४०१।।