पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१७९

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ऐसन ठ ऐसन' -वि० [हिं० ऐसा दे० 'ऐस' । ३०--लोभ मोह सेव दुरि में जाना । चूल्हे में जाना । नष्ट हाना। (परदाई सूवित वहावो ऐचन अदल चलावा । घपं० श०, पृ० ७० । करने के लिये) । जैसे,—जब समझान से नहीं मानते तब ऐसन-क्रि० वि० दे० 'ऐसे' । । अपनी ऐसी तैसी में जायें । ऐसा--वि० [सं० ईदृश, अप० अइ9] [स्त्री॰ ऐसी] १ इस प्रकार का। ऐसे-क्रि० वि० [हिं० ऐस] इस ढव से। इस ढंग से । इस तरह से इस दुग का। इस afति का। इसके समान । जैसे,—तुमने । जैसे,—वह ऐसे न मानेगा । ऐसा आदमी कहीं देखा है ? ऐहलौकिक-वि० [सं०] दे० 'ऐहिक' (को०)। महा०—ऐसा तैसा या ऐसा वैमा= साधारण । तुच्छ । अदना। ऐहिक-वि० [सं०][वि० ० ऐहिकी] इस लोक से सवध रखनेवाला । नाचीज । जैसे,—में क्या तुमने कोई ऐसा वैमा अादमी समझ जो पारनौकिक न हो । सासारिक । दुनियावी । स्थानीय । रक्खा है । (किसी को) ऐसी त पी = योनि या गुदा (एक गाली) जैसे,—उसकी ऐसी तैसी, वह क्या कर सकता है ? ऐहिक-सज्ञा पु० सामारिक व्यापार या कर्म (को०] । ऐसी तैसी करना = बलात्कार करना। (गाली)। जैसे,- ऐहिकदर्शी--वि० [सं० ऐहिकदशिन] सनार को ममझनेवाला । तुम्हारी ऐसी तैसी करू, खडे रहो। ऐसी तैसी में जाना = 'माड दुनियादार (को॰) । श्रो-सस्कृन वर्णमाला का तेरहवीं और हिंदी वर्णमाला का देस उ०—-वह अँचल वुल पोछते, कर कधी पर बाल कृते । -साकेत, पृ० ३३८ । स्वर वर्ण । इसका उच्चारणस्थान ग्रोष्ठ अौर कंठ है । इसके ओझल-संज्ञा पु० [हिं०] दे० 'झन'। उ०—देवनदन ने देखा, उदात्त, अनुदात्त, स्वरित तथा सानुनासिक और अननुनासिक । इतनी बातो के कहने पीछे वह जोत फिर ग्रोझन हो भेद होते हैं । सधि में अ+उ = शो होता है। गई !-ठेठ०, पृ० ८१ ।। ओअव्य० [सं० प्रोम्]१ एक अद्ध गकार या स्वीकृतिसूचक शब्द । श्रोटन-क्रि० स० [हिं०] दे० 'प्रोटना' । हौं । अच्छा । तथास्तु । २. परब्रह्मवाचक शब्द जो प्रणव मत्र ओठ-सज्ञा पु० [मॅ० प्ठ, प्रा० ओट्ठ] मुह के बाहरी उभड़े हुए कहलाता है ! छोर जिनसे दात ढके रहते हैं । लव । होठ । रदच्छद । विशेप--यह प्राब्द वैद्त पवित्र माना जाता हैं और वेदमत्रो के रपट । उ०—-हरदम मिर पर मौत खडी है अौठो पर ईश्वर पहले तया पीछे चला जाता है। माडूक्य उपनिषद् में इसी है --पथिक, पृ० ४२ । शव्द की व्याख्या भरी हुई है। यह ग्रंथ के प्रारंभ में भी मुहा०—ोठ उखाउना= परती खेत को पहले पहल जोतना । रखा जाता है। पुराण में 'म्' के ऋ, उ र म क्रम से ओंठ काटना = दे० अोठ चबाना' । ओठ चबाना= क्रोध और विष्णु, शिव और ब्रह्मा के वाचक माने गए हैं। दुख से अोठ को दाँतो के नीचे दवाना । क्रोध और दु ख प्रकट ओकार- सज्ञा पुं॰ [सं०-झोङ्कार] १ शब्द । २ ‘’ शब्द करना। प्रोठ चाटना= किसी वस्तु को खा चुकने पर स्वाद का निर्देश या उच्चारण। ३ सोहन चिड़िय। ४ सोहन की लालसा रखना। जैसे,- --उस दिन केसी अच्छी मिठाई खाई पक्षी का पर जिससे फौजी टोप को कल गी बनती है। थी, अबतक ग्रोठ चाटते होग। ओठ चूसना = अधर चुबन कारनाथ-सज्ञा पु०[स० ओडारनाय]शिव के द्वादश ज्योतिलिंगो करना। ओठ पपडाना = आठ पर बुश्की के कारण चमड़े को में से एक । इनका मदिर मध्यप्रदेश के माधाता नामक सूखी हुई तह देव जाना । ब्रोठो पर आना या होना = जवान पर होना । कुछ कुछ स्मरण अाने के कारण मुह से निकलने प्रोग@f---सज्ञा पु० [सं० ओम्] दे॰ 'प्रोम् । उ०—व्रह्म ऋद्धि प्रग पर होना। वाणी द्वारा स्फुरित होने के निकट होना । | पद सारा 1-कवीर श०, पृ० ११ । जैसे,—(क) उनका नाम ओठो ही पर है, मैं याद करके अोइछन–क्रि० स० [+वाञ्चन] वरना । न्योछावर बतलाता हैं। (ख)उनका नाम ठिो पर ग्रा के रह जाता हैं। | करना ।। ओकना- क्रि० प्र० [हिं० शोकाई दे० ‘ोकना' । (अर्थात् थोडा बहुत याद आता है और कहना चाहते हैं पर भूल जाता है) । अठों पर मुफराहट या हैसी प्राना दिखाई श्रोगन--सज्ञा पुं० [सं० अञ्जन] गाडी के पहिए की धुरी में लगाने देना = चेहरे पर हैनी देख पड़ना। ग्रोठ फटना=वपकी के के काम अानेवाला तेल --(२०)।, कारण ग्रोठ पर पपड़ी पडना । प्रोठ फडकता = क्रोध के कारण ओपना--- क्रि० स० [स० अञ्जन या हि० 'ग्रॉगन' से] गाडी की 5 को ना ! अोठ मलना = कडई वात करनेवाले को दड घुरी में चिकनाई लगाना जिसमें पहिया ग्रासानी से फिरे । देना । मुंह मसलना । जैसे,--प्रव ऐन व तु कहोगे तो ः प्रोगा-संज्ञा पुं० [स० अपामार्ग] लटजीरा। यज्ञाझारा । चिचडी। मल देंगे । श्रोटो में कहना = धीमे ग्रौर अपुष्ट स्वर में कहना। | अपामार्ग । मूह से साफ शब्द न निकनना। ओठी में मुतकराना = ओछना- क्रि० स० [सं० उञ्छन, हि० अँछना] दे॰ 'ॐछना' । बहुत थोडा हेमनी । ऐमा मना कि वहुत प्रकट नै हो ।