पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

घोछाई औझल ओछाई--संज्ञा स्त्री० [हिं० छा+ई (प्रत्य॰)] नीचता । क्षुद्रती । ओजूद- सच्चा पुं० [अ० वजूद] शरीर । तन । जिस्म । उ०—तजो छिछोरपन । खोटाई। उ०—महि ग्रोछाई भई जवहि तुमको कुलती मेटौ भग । अहनिसि राप मोजुद वधि । सरव सजोग प्रतिपाले । तुम पूरे सव भाँति मातु पितु सुकट घाने ---सूर अवै हथि । गुरु राखें निरबाण समाधि --गोरख०, (शब्द॰) । पृ० ७४ ।। ओछाड-वि० [प्रा० ओच्छाध = आच्छादन करना]रक्षा करनेवाला। ओजोन- सच्चा पुं० [फ़च] कुछ घना किया हुया अम्लजन तत्व । रक्षक । पाल क । उ०—सगत सुखी कर सेवगा, अखिल जगत विशेष इसका घनत्व अम्लजन से १३ गुना होता है। इसमें अछाड १-~-बाँकी ग्र०, भा० १, १० ४८ । गध दूर करने का विशेष गुण है । गरम पाने से मोजोन ओछापन--संज्ञा पुं० [हिं० ओछा + पन (प्रत्य॰)] नीचता । क्षुद्रता । साधारण अम्जन के रूप में हो जाता है। प्रोजोन का छिछोरापन । वहुत थोडा अश वायु में रहता है । नगरों की अपेक्षा गाँव ओछार--सज्ञा स्त्री० [हिं० बौछाड़] दे० 'बौछाउ' । की वायु मे जोन अधिक रहता है । सागरतट पर तथा प्रोज--वि० [सं० ओजस्] विषम 1 अयुग्म (को०)। पहाड़ो पर यह बहुत मिलता है इसका सकत ‘ो' 3 है । ओज- - सज्ञा पुं० [f६० जना = सहना]कृपणता । किफायतदारी । ओजोन पेपर-सी पु० [फ० ओजोन +अ० पेपर] एक प्रकार का | कापण्य । जैसे, वह बहुत अज से खर्च करता है । कागज जिसके द्वारा यह परीक्षा हो सकती है कि वायु में प्रोज-सज्ञा पु० [सं०][ वि० प्रोजस्वी, शोजित] १ बल । प्रताप । | ओजोन है या नहीं। उ०- तेज शोज और बेल जो वदान्यता कदम्ब सा ।- लहर, पृ० ओजोनवकस--सझा पुं० [फ़” ० जो + अ० वाक्स] वह सदुक ५६ । २ उजाला । प्रकाश । उ०—कामना की किरन का जिसमे ओजोन पेपर रखकर परीक्षा करते हैं कि यह की जिसमे मिला हो मोज । कौन हो तुम, इसी भूले हृदय की हुवा मे प्रोजोन है या नहीं। यह बकस ऐसा बना देता चिर खोज --कामायनी । ३ कविता का वह गुण जिससे है कि इसके भीतर हवा ती जा सकती हैं, पर प्रकाश नहीं सुननेवाले के चित्त में शावेश उत्पन्न हो । जा सकता। विशेष–वीर और रौद्र रस की कविता में यह गुण अवश्य होना प्रोझ--संज्ञा पुं० [सं० उदर, हि० ओभर] १ पेट की थैली । चाहिए । टवर्गी अक्षरों की अधिकता, सयुक्ताक्षरो की बहुतायत पेट । २ त । और समासयुक्त शब्दो से यह गुण अधिक अाता है । पुरुषावृत्ति प्रोझ-सज्ञा पुं० [हिं० झा] दे॰ 'ओझा' । उ॰—तुलसी रामहि । मे यह गुण होता है । परिहरे निपट हानि सुनु ओझ । सुरसरि गत सोई सलिल सुरा ४ शरीर के भीतर के रसो का सार भाग । ५ ज्योतिष में सरिस गगोझ ।—तुलसी ग्र०, पृ० १०८ । विषम राशियाँ (को०)। ६ शस्त्रकौशल । ७ गति । वेग मोझइत-सज्ञा पुं० [हिं० प्रीक्षा+ ऐत) अद्दत (प्रत्य॰)] ३० ‘मोझा'। (को०) । ८ पानी (को०)। ६ प्रत्यक्ष होना । अविर्भाव होना ओझइती--सच्चा लो० [हिं० अोझइत] दे॰ 'ओझैती' । (को०)। १० धातु का प्रकाश (को०)। ११ जननशक्ति या अझकना यकr/n -- क्रि० अ [हिं० उस कन] चौंकना । चमकना । जीवन शक्ति (को॰) । ऊ० --सूती सपने ओझकी बोली अटपट वैन । जन हरिया प्रोजक-सज्ञा पुं० [हिं० उझकना] उछल कूद | क्रीडा । अनिद । घर आँगनै सही पधारे सैन । रा० धर्म०, पृ० ६७ ।। उ०--लाडो लाडी जाय लडावण रायू शोजक सारै। जन ओझडी----सझा मी० [दे० प्रा० ओज्झरी] दे॰ 'मोझरी । । हरिराम फिरै मन फीटी ध्यान न हरि का धार ।—राम० । ओझर--सझा पुं० [सं० उदर, प्रा० ओझरी, पुं० हि० ग्रोवर, ओझर धर्म०, पृ० १७३ । ओजना--क्रि० स० [स० अवरुध्य्, प्रा० ओरुज्म, हि० ओझल) [ जी० अल्पा० ओझरी] १ पेट । २ पेट के भीतर की वह | रोकना । ऊपर लेना । सहना । स्वीकार करना । थैली जिसमे खाए हुए पदार्थ भरे रहते हैं। पचौनी । ओजसीन--वि० [सं०] मजबूते । शक्तिशील । ताकतवर [को०) । अझराना--क्रि० अ० [सं० प्रवन्धन, प्रा० ओरुज्झन] ओजस्वान्--वि० [सं०] १ शक्तिशाली । ताकतवर । २ दीप्त । उलझना । अरुझाना। लिपटना । उ०—प्रघर सुखाएल केस चमकीला । ज्योतित (को०) । ओझराएल नीलि नलिन दल तहू ।—विद्यापति, पृ० ३०५ । ओजस्विता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] तेज । काति । दीप्ति । प्रमवि' । ओझरी–सच्चा सी० [३० प्रा० ओज्मरो] ओझर । पचौनी । उ०-~ओजस्वी--वि० [सं० ओजस्विन्] [वि० बी० ओजस्विनी] १ ओझरी की झोरी काँधे अतनि की सेल्ही वाँधेमूह के कमेडलु शक्तिमान् । तेजवान् । प्रभावशाली । २ प्रतापी । द्योतित ।। खपुर किए कोरि कै ।—तुलसी ग्न ०, पृ० १६५।। दीप्त 1 चमकीला (को०) । ओझल'--मद्या स्त्री० [स० अर्व = नहीं+हि झलक] ओट । अाड । ओजित--वि० [सं०] १ बलवान् । प्रतापी । तेजवान । शक्तिशाली। उ०--अबै तौ रूप की ओझल से इसे निश क बातचीत करते २ उत्त जित । जिसमें जोश प्रायः हो । प्रोजयुक्त । देखू गा ।-शकुंतला, पृ० १४ । | शोजिष्ठ-वि० [स०] अत्यंत उग्र । अत्यधिक शक्तिशाली [को०] । ओझल—वि० लुप्त । गायब । उ०—-दिल झल मेरा दिल जानी । मोजोय-वि० [सं०] १० ‘ोजिष्ठ' [को०] । --धरनी॰, पृ० १८ ।