पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१८३

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अझा झोड़क झा'.-सज्ञा पुं० [स० उपाध्याय, प्रा० उज्झायो, उज्झाय, ग्रोटनो ---सच्चा श्री० [हिं० टना] कपाने ग्रीटने की चरखी। श्रोन्झाय] [स्त्री० श्रोझाइन] सरजुपारी, मैयिल और गुनाती चरखी जिसमें कपास के बिनौले अलग किए जाते हैं । वेलनी । ब्राह्मणो की एक जाति । प्रोटपाय---सा पुं० [स० प्रप्टपाद, प्रा० अट्ठपाव] दे॰ 'अठपाव'। ग्रोझाचंझा पुं० भूत प्रेत झाइनेवाला । सयाना 1 उ०—मए जी 3 ३०–चाड सिर चढत बृढ त यति नडिलो ६ कैसे गने बने विनु नाउत प्रोझो । विप भई पूरि, काल भए गोझा --- जायसी (शब्द॰) । जेब प्रोटपाय तव के ।-घनानद०, पृ० ४६ ।। शोझाई-सज्ञा स्त्री० [हिं० ग्रोझt+ई (प्रत्य॰)] झा की बत्ति ।। ट।'—संज्ञा पुं० [हिं० प्रोट] १. परदे की दीवार। पतली दीवार भाडफूक । भूत प्रेत झाडेने का काम ।। जो केवल परदे के वास्ते बनती है। उ०—(क) मन अरपण ओझैत- सच्चा सौ० [हिं० ग्रोझा+ऐत +ई (प्रत्य)] दे॰ 'ओझाई' । कौदै हुरि मारेग । चाहै प्रज प्रोटे चडीं।- वेलि०, १० १३६। भोट’---सज्ञा स्त्री० [सं० उट = घास फूस या स० ग्रा+वृत्ति = प्रावरण, () चाहै मुत्र अगणि प्रोटे चढ़ि ।--चेलि०, ६० १५५ । या म० प्रणिन> श्रद्धन> घोट प्रयवा देश० श्रोहट्ट = प्रव २ परकोटा । घेरा । बधि उ०---तन सरवर जन्न वीर रस गुठन] १ रोक जिससे सामने की बम्तु दिवाई न १हे या ग्रौर अटा वधि सुरपि ।--१० र २, ५५६६ । ३ अइ । ओट। कोई प्रभाव ने हाल मुके । विक्षेप जो दो वस्तुग्री के बीच कोई उ०--देवत रूप ठगौरी मी लागत नैनभि सैन निमैप की तीसरी वस्तु आ जाने से होता है । व्यवधान ! अाई । ग्रोटा 1-नद० ग्र०, पृ० ३४१ । १४ ब्राह्मणी । वनन) 1 शोभन । जैसे,—वह पेड़ों की अट में छिप गया। ३० वनकुस । नाता अोट सव सविन लखाए 1--मानने, १॥२३१ । | अोटा--मन्त्री पु० [हिं० ग्रोटना कपास अटनेवाला अादमी । महा०—-छांवो से ग्रोट होना= दष्टि से छिप जाना । ओट में प्रोटा-मज्ञा पुं॰ [हिं० उठना] जन के निकट पिसनहारियों के बहाने से । हले से । जैसे,—घमं की अट में बहुत से पाप होते हैं । वैठने का चबूतरा । २ शरण । पनाह । रक्षा। उ०—(क) वडी है राम नाम ओटा--सज्ञा पु० [ह० गठन] नोना का एक औजार निममे वे की ग्रोट । मरन गएँ प्रभ काढि देत नहि, करत कृपा के कोट । | वाजत्नद के दांतो की खोरिया बनाते हैं। इसे गोटा भी -चूर०, १॥२३२। (ख) तन ग्रोट के नाते जु कब ढाल । कहते हैं । हम अाही नहीं 1-पद्माकर ग्र०, पृ० १४ । ३ वह छोटो ओटी–सज्ञा स्त्री० [हिं० ओटना] चरखी । कपाम अ"टने की कन । मी दीवार जो प्राय राजमहला या बड़े बड़े जना” मकानो के प्रठिना- संज्ञा पु० [६० अठग्ना] दे० 'उठान' । मृतु द्वार के ठीक अग, अदर 47 और परदे १ लिये बनी ऋठिगना-क्र० अ० [सं० प्रथाङ्गन > प्रा० भोटठगिन यी हि, रहती हैं। घूघट की दीवार । गुलामगदिश 1 उठना + अग] १ किसी वस्तु से टिककर बैठना। सहारा अटिसा पु० [देश॰] कुसुमोदर नाम का एक वृक्ष । लेना । टेक लगाना। उठेगना। २ था। अराम करना । विशेष—इसमे बरसात के दिनों में सफेद और पीले सुगधित फूल कमर सीधी करना । तया ताड़ की तरह के फल लगते हैं। इन फलो के अंदर अोठेघना --क्रि० अ०[हिं०]३० टॅगना' । उ०—सत्र चौपारिन्। चिकना गुदा होता है और इनका व्यवहार खटाई के रूप चंदन व ना। ठंधि सभापति वै स । --जायसी ग्र० में होता है । वैद्यक में यह फल चिकर, नुन-शुलनाशके, (गुप्त), पृ० १६।। मलरोधक अौर विपघ्न कहा गया है ! ठेघाना-क्रि० म० [हिं०] २० 'उठेना '। पय०-भव । भव्य । भदिप्य। भवन । वकशोधन । लोक । ठ+- संज्ञा पुं० [सं० श्रोष्ठ, प्रा० अठ] ० 'योठ' । वृ०-मुझे संयुटाग । कुसुमोदर । प्यास लगी थी, अोठ चाटने लगी कंकाल, पृ० २१३ । ग्रोटन--संज्ञा पुं० [सं० झा+ वर्तन, हि० प्रोटना] चरखी के दो डडे ओठ —संज्ञा क्षी० [हिं० अठ] वह खेत को परती टोडते हैं। जिनके घूमने ने रुई में से बिनौले अलग हो जाते है । । मोटना--क्रि० स० [१० अरवर्तन, पा० श्रावन, प्रा० आउट्टण] १ उ०—सिमटा पानी खेतो की, ग्रो पर चले हल !--अपरा, १० १६५। कपात को चरखी ने दवाकर राई रि बिनौला की अलग ग्रोड'खें - सज्ञा पुं० [हिं० ग्रोट] दे॰ 'अ' । ३०---गरब अग्नि अलग करना । उ०—यहि विधि कहाँ कहा नहि माना । । गहिरे सव जरा । विनती गोड खरग नि सतरा ।-चित्रा०, मारग माहि पसारिनि तोना । ति दिवस मिलि जोरिन तानी । प्रोट कातत अरमन नागा ।-कवीर (शब्द॰) । २ वार अड -संज्ञा पुं॰ [स अवार] दे॰ 'श्रीर"। उ०—(क) कबीर ख़ानू वार कहना। अपनी ही बात कहते जाना । जैसे,—तुम तो प्रीति करि जो निरवाहै होड़ि --कवर ग्र॰, पृ॰ ४३ । अपनी ही मोटठे हो दूसरे की सुनते ही नहीं ! ३ रोकना । (a) मानिनि मान अपहु कर ।। २वनि वहति है रहल अदना । अपने ऊपर भहना । उ॰—(क) दास को जो दारी अछ । विद्यापति, पृ० १२२ ।। फोटो नई अग में ही नही मैं तो जाडु वि जय मूरति ग्रोड’- सज्ञा पुं० [हिं० ड या देश॰] १ वह जो गहों पर ईट, बताई है ।- प्रिया (शब्द॰) । (ख) मुरि मुसुकाई जो चूना मिट्टी आदि होता है । गदहा पर माल होने वाला वक्ति । पिछह चौट ग्रटी है ।-रत्नाकर, भ६७ २, पृ॰ ३०६।४ । ३० ‘आँ' ।-वर्ण०, पृ० १ । अपने जिम्मे लेना । अपने ऊपर लेना । प्रोडक-सुज्ञा पुं॰ [सं॰] दे॰ 'प्रोडव' (२] ।