पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१८४

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भ ६६६ प्रोतृवानों प्राइः - 17 : [5• मंतबर ३। ' ने' । अोड़--सा पुं० [सं०] १ इडोसा देश । २ उस देश का निवासी। ६न५-~-1 1 2 [४० ना १ प्रोने की वस्तु । र ३. गुडहर को फल । देवीफूल । उहुले । पर। * ! ३०-३५ वर पानधरज मग्र ग्रोउन सब ओढ -वि० [न०] समीपू या नजदीक लाया हुग्रा वै] । -: -1 °१०, ६१।२०१३ । २ दाल । फरी। उ०—ोढन-सय पु० हि० सोढ़ना] प्रोढने का वा । ३०-लोभइ मोइन । र १r १५ र दीन्हा। 17 में प्रोन पर लीन्हा ।। डासैन । सिस्नोदर पर जमपुर त्रास न ।—मानस, ७१४० ।। -१ (३०)। प्रोढना'--क्रि० स० [सं० अवा या उपा+वेष्ठन, प्रा० प्रवेण] मना - ३० [५ प्रोणन - हटाना या हिं० ड+ना। १ कप है या इसी प्रकार की और वस्तु से देह ढकना ! शरीर के (परन०)] १ २ पिन । यार। र ना ! माउ करना । उ०---- किसी भाग को वस्य आदि से ग्नाच्छादित करना । जैसे,—रजाई f; 35] - १,१५ । घिहि हाय आमनिहू के घाये । प्रोना, दुपट्टाम्रो इना,चद्दर मोडना ! उ०-मारग चलत अनीति --भानन, २३०।। २. उपर नेना। मह्ना । उ०—दुसरी करते हैहठ कर माखन पात। पीतावर वह सिर ते ओढत, इगु । म ; ३ मा ३३ ही हाइ हाइ गई है। रायो भले अंचल में मुमुकात ।—सूर०, १०॥३३८ । २ अपने ऊपर "नात ,मन फन्।ि ६ फूल ) प्रोद नई है ।-मि लेना । सहना । उ०—–परे सो ढेि मीम पर भीखा सन मुख (०, १० ११ । ३ (दुध लेने के लिये) फैलाना । पसारना। जोइ । द निस्चै हरि को भज होनी होइ सो हो। T! । १२--- (°F) ने मातु, शहिदानि मुद्रिका दई प्रीति ---मख०, श॰, पृ० ६४ । ३ जिम्मे लेना । 'भागी बनना । - ना५ । 137 R 3 निवार प्रोडनु दचिन हाय । अपने सिर लेना। जैसे,—उनका ऋण हमने अपने ऊपर दूर ६८३ (7) गपॐ न कही कोने नहि धोइयों अोढ़ लिया। उ०- बोल नहीं रह्यो दुरि वानर ३१ ----१०, १० १२८ । (ग) अपर मोठि मनावह fifa न । उ7 पूर [ । विघ्न निवारि विवाह गराउनु द्रुम में देह छिपाई । के अपराध अोइ अव मेरो के तू देहि दिखाई 1--मुर०, (शब्द॰) । । '६ पु-यम --पराज (शब्द॰) । महा०-२ढ़ या विद्यादें ? =क्या करें ? किस काम में लायें ? 97--1,41 ई० [भे० ] राग का न भेद विरामे ‘मा म म ध नि' उ०---दुमह वचन अत्रि में न भावें । जोग कहा ओ है कि 1 । । र पाने '। इसमें अपने प्रौर परम वजित हैं। विद्यावे - स०, १०५०६४ । न र? n}, रग रहे धन ।।। ढिना'- 1 पुं० आढने के वस्त्र । ३०--मधुलिका का छाजन ५ --मरिय पा1771 में पोप का एक भेद । इसके टपक रहा था। इसे की कमी थी । वह ठिठुकर एक कोने पर 7१४ १५ र अवरोह में छह पर प्रयुक्त किए में बैठी थी ।-अधी, पृ० ११७।। ३. !। प्राइव राम = यः । प्रति का एक भेद है। जिसके यो०-ओढ़न! विथना=(१) अढ़ने और विछाने का वस्त्र । u17 में } । र घोर भयर में नाणं अन् सात स्वरो (२) व्यवहार को वस्तुएँ । मरजाम । टटपट । pr प्रोन र ? जवा । । मुहा०--प्रौढ़ना उतारना = अपमानित करना । इज्जत उतारना। अ:'-सु. ५५ [६० पुग्ट, प्र; इर][ी० घोडी] १ ३० ‘मोड़ा' घोड़ना ढ़ना = डे स्त्री के साथ सगाई करना (छोटी | ३ ३ ३ ३ । इरा नि नयी पा7 रपते है । । । जाति) । मोड़ना गले में डालना= बधिर न्यायका के । देकर । ३०-- गुच पी रे माहू पर कावडा पुरीप। | पास ले जाना । अपराधी बनाकर पकड रखना। -!१० 1 *, *१० ३, पृ० ५५ ३ एक चिया का विशेप--पहले मह रीति थी कि जो छोटी जाति की स्थिया के मान बिग , ना नाप जाना है। सायं कोई अत्याचार करता था तब मैं उसके गले में कपड़ा भेडा-11 12 [, ऊन, प्र! ॐ] कमी । पक्राउ । टोट। डालकर चौधरी के पास ले जाती थी । नदी-घोडा पानी = {1) अप्राप्य होना। चकाना पवना ।। प्रौढ़ना विनर बनाना हर वक्त या वैपरवाही से काम '३. उन । मे 'ना । ६f :- *, १० [३०] fना उla ए उत्पन्न होनेवा; शौढनी--मज्ञ श्री० [हिं० प्रौढ़ना] स्त्रियों के पोदने का वस्त्र । ५ ।। {साँचा:* 1 ; {६० ।। उपरनी। फरिया । ३०-देव लाई स्वच्छ मधुक कपोन में, f'-- १, ५॰ [[१७ उडिया} : '2 ' । विनक गई उर मे जरतारी होना ।--महा०, पृ० १३ ।। म :- * *[3! • ‘११:' (२०} । महा०-- 9ोड़नी पवनना = वनापा जाना । म उनाना । सन् ! [] १र : 1 ने इन। 11 का एक | वन | TJ म्यापित 'रना ।। 47 v५ ८/१r fr३ मा । या if 7 नामक ना२६ प्रढिर -मग पुं० [f० मा यो प्रो==ीद, सहारा बहाना । 4 217 * ५५ ६ : ‘र -17 है। 4 । विगत मिस । उ०-- सुनि । मोर जनि परतू । f{ज पुत्र राति उदय मई र 1 न बन गव गपिन रे । फरि श्री ३ वाये 41 •५'-- * * * * * *1:' । ३०-४में 3 1fर में -- म ( ३०) । | ५३ ।। ५, ६; २,१1-12 (c), द्विाना-कि० ० [fza zान का ३० भूप] कप छ पनि ।