पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१८६

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औदात ७० ० योनामामी पृ० २०६। पद्मरार ग्रोदे वमन में गौछि मूर०, १०॥६०६ । (ख) अन+---सर्व० [हिं०] ६ ‘उन' । उ----श्रोन मिनिट जीं दे पिर हिनि दी लाकडी सपचे श्री घुघुयि। छुटि पढौं या परेवा । तजा राज कजरी उन मेवा ।जायमी ग्र० (गुप्त), विरह से जो सिगरो जरि जाय ।--कवीर म०, पृ० १६ । दात+- संज्ञा पुं० [सं० अवदात] ६० 'अवदात' । उ०—इरित, नइस+--- वि० [१० ऊनविश] ६० जनम' मोर 'उन्नीस', उ० मनिष्ठ, लोहित, अवैत (ग्नदात) या मिश्रित - हिदु० --वारह निइस चारि मनाइस। जोगिन मच्छिउँ दिम। सम्यता, पृ० ३०१ । गनाइम [ जायगी ग्र०, पृ० १६८ । । । दादार*---वि०[फा० ओहदेदार दे० 'श्रोहदेदार' । ३०-दा- दि अनचन-ज्ञा स्त्री॰ [सं० उदयन, या भगन्चग, अवचन द्वि० - दार प्रागै छा जका ने दूरि की। माटा काम छोटी अदम्या ऍचना] वह रस्सी जो चारपाई के पैतान की मोर विन्न का ने सौप दीना है--शिखर०, ११० । खींचकर कड़ा रम्माने के लिये लगी रहती है। प्रोदारना+–क्रि० स० [सं० अवदारण या उद्दारा] १ विदीर्ण नच नचना---क्रि० स० [हिं० ऐ चना] चारपाई के पायताने को वा करना । फाइना । ३ छिन्न भिन्न करना 1 ढाना। नष्ट करना। जगह में लगी हुई रसी की पिनन वो कई रखने के दासीमज्ञा पुं० [हिं० उदासी] विरक्त पुष । त्यागी पुरुप ।। लिये वाचना। उ०-न] इह गिरही ना ग्रोदासी । ना इहू ज न भी नतिस-वि०म० कनेत्रिश] ३० 'उनतिम' । ३०-स अठाइव मैगासी |--कोर ग्र०, पृ० ३०१ । नतिस माता। उत्तर पछिउँ ।' ने नाचा ।--जायसी श्रोद्रक+सृज्ञा पुं० [स० उदफ] ६० ‘उदक' । उ०--सामदै डहोला ग्र ०, पृ० १६८ । । प्रोद्रका, जर हिलोला हल्लियो ।--- रा ०, पृ० १६४ ।। नवना --क्रि० प्र० [स• अवनमने या उन्नयन] ?” 'नवना' । शोध-मज्ञा पुं० [सं० श्रोधस् यन । म्तन (को०] । ३०-• मानवत माइ सेन सुलतानी । जान परलय 13 श्रोच --सज्ञा स्त्री॰ [म० अवधि मीमा । १६ । परराकाठा । उ० तुलानी ।--जायसी ग्र०, पृ० २९० । मूपन मनत मौसि ना मृताल भूमि तेरी करतुति रही अद्भुत व नवाना । -क्रि० स० [हिं० प्रोनयन का प्रे० रूप] नीचे रम ग्रोध है ।-मुराण ग्र०, १० १०९।। नमाना। झुकाना । उ०--मेहरी भम रैन के प्रावै । तर पड़ धण--सज्ञा पुं॰ [स० अघस, हि० प्राधा मोटे लबे लकड़े, जो के पुरुख ग्रोनवावै ।—जायसी प्र ०, पृ० ३४३ । गाडी के नीचे लगे रहते हैं। उ०—वै अधण वधिया, ता+१- संज्ञा पुं० [सं० उदगमन, प्रा० उगवन] तात्रावों में पानी पैसे पई पताल !--बाँकी० ग्र ०, मा० १, पृ॰ ३० । के निकलने का मार्ग । निकास । उ०—गावनि वजावत श्रोचना----क्रि० ग्र० [सं० श्रावन्धन] १ धना । लगना । फॅमना । नचत नाना रूप करि जहाँ तह उपगने अनद को प्रोनो सौ । नझना । उ॰—राव तन तासी ग्रोधा। सूतहि सूत केशव (शब्द॰) । वैधि जिउ सोधा !--जायसी गु०, पृ० ११२ । २ काम में मुहा० -प्रोना लगन == तालाब में इतना पानी भरना कि ग्रोन लगना या फेसना । उ०-सचिव सुसेवक मरत प्रपोधे । की राह से बाहर निकल चले । जैसे,- -आज इतना पानी निज निज काज पाइ सिप प्रोधे ।--मानस, २३२२ । बरसा है कि कीरत सागर में ना लग जायगा। उ०-जमुना शोधना --क्रि० स० नाँघना । ठानना। उ०—-मारत ६ जूझ जों जन जाति राति हती, यह जानति ही घर घर में होना । धा। होहि सहाय ग्राइ सब जोधा ।—जायमी ग्र०, पृ० ११३॥ गग कहे सोइ देखिये ताहि हौं जाहि जु ये जिय लाग्य है। वा----मT पुं० [अ० ओहदा] १. पद । अधिकार। २ अधिकारी श्रीनो !--[ग०, पृ० १२ । मालिक ! शोनाड -वि० [देशन] १ जोरावर । वनवान - वि०) यो०- मोघादार= ओहदेवरि । उ०-प्रधादार पोल्या प्राणि ३ ऐ ठनेवाला ! ३० -प्रगू के ग्रोनाइ अचू के उदारे 1-रघ० | पैसे तो निमडिगो --यावर०, पृ० ४८ । ६०, पृ० २४१ । घायत--- सज्ञा पुं० [अ० शोहदा, राज० प्रोदा, झोघा+प्रायत = नाना-क्रि० स० [सं० भवनमन] १ दे० 'उनाना' । १ कान वाला या पु.] हाकिम। अधिकारी । ३०–अवरही लगाकर मुनना। कार पाने तिस तिस शो Bायत अपनी अपनी जिनसून अाय 1 नीना--क्रि० अ० [सं० अफर्णन, प्रकर्ण न] सुनाई पड़ना । --रघु० रू०, पृ० २४१ । श्रवणगोचर होना । उ०-हेरत धाते फिर चहुघा ते अोनात ग्रोवू - सुज्ञा पुं० [स० अदघृत, पु० हि० अवधू] योगियों का एक हैं बात देवान तरी स; --fभारी ग्र०, ‘मा १, पृ० २५।। भेद 1 अउधृते । उ०-ये इद्रिय ददै सु अधि । ये इद्रिय दवे शोनामासो-सज्ञा स्त्री० [सं० ॐ नम सिद्धम्] १. अदरार में । उ० - सु धू ---मुदर ग्र०, मा० १, पृ० १४६।। | पढ़ो मन प्रोनामासी धग |--कवीर श०, पृ० ३ । श्रोधे --सज्ञा पुं० [सं० उपाध्याय] अधिकारी । मालिक । विशेप-बच्चो में पाठ प्रारम कराने से पहले औ नम्. सिद्धम् अनित -वि० [सं० अवनत नत । नग्न । झुफा हुआ। । ३०-उठे कहलाया जाता है। इसका रूप नाभास और ग्रीनामा कोप जनु दारि वे दाखा। मई शोनत प्रेम के मापा ।—जायसी सीधग भी मिलता है। जैसे,--२१ साल तक घर में रहे अ ० (गुप्त), पृ० १६० । मोनामासीघ । बाप पड़े न हुम ।--किन्नर०, १० ६७ ।