पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

घरगोटंग २ प्रारंभ । शुरू। पासम--संज्ञा पुं० [अं॰] दक्षिण अमेरिका में रहने वाला विल्ली क्रि० प्र०—करना ।---होना । | की तरह का एक जतु ।। प्रोप--संज्ञा स्त्री० [प्रा० ऋोप्पा, हि० ओपना] १ चमक । दीप्ति । विशेप- यह रात को घूमता और छोटे छोटे जीबो का शिकार ग्राभा । काति । झनक । सुदरती । शोभा । उ०—(क) करता है। इसके ५० दाँत होते हैं । मादा एक वेर में कई म-िनृ देह, वेई वतन, मलिन विरह के रूप । पिय ग्राम वन्चे देती है । चलते समय वच्चे माँ की पीठ पर सवार हो और चढ़ी अनने ग्रॉप अनूप -विहारी र०, दो० १६३ ।। जाते हैं और उसकी पूछ में अपनी पूछ पेट लेते हैं । (ख) झीने पेट में झुनमुनी झनकृति प्रो। अपार । सुरत की शोपिका -वि॰ स्त्री० [हिं० श्रोप+इके (प्रत्य॰)] अपयुक्त । मनु सिंधु मैं लसति चपल्लवे डार 1--विहारी र०, दो० १६ । कातियुक्त । विमूपित ! शृ गारित । उ०—-अदित असोक भी २. जिला | पालि । ३०--ए री प्राप्यारी तेरी जानु के सोक भरी दिति अौर दोष भरी पूतना अदोष कैरी पिका। सुजानु विधि प्रोप दीन्हो अपनी तुपाम सुधराई को । -सुजान०, पृ० ३।। भिखारी T०, भा० १, पृ० ६५ । प्रोपित-वि० [हिं० अप + इत (प्रत्य॰)] कातियुक्त । विभूपित । क्रि० प्र०—करना ।—देना । उ०--तमो गुन अपि तुन ग्रोपित, विरूप नैन, लोकनि विलोप अपची-नुज्ञा पुं० [हिं० प्रोपई = चमक) +तु० ची (प्रत्य०) = वाला करे, कोप के निकेत है !-केशव ग्रं॰, भा॰ १, पृ० १५२ ।। वह जोधा जिसके शरीर पर झिलिम चमकता है। कवचधारी श्रोपो'- वि० [हिं० श्रॉप +ई (प्रत्य०)] कातियुक्त । सुदर। योद्धा । रक्षक योद्धा। उ०—(क) किते वीर तनुत्राने । उ०—-कुब्जा त्रिभग प्रोपी हम सब बुरी हैं गोपी ।--- को अ५ साजै। किंते शोपची ६ धरे अप गाजे --सूदन व्रज यू ०, पृ० ४३ ।। (जब्द॰) । (ख) जिरही तिलाही प्रोपच उमडे हुय्यारन को ओपो -क्रि० वि० डूबी हुई । लीन् । निमग्न् । उ०— गावत गोरी लिये ।--पद्माकर 7.०, पृ० ११ । रस में ओपी गोप बजावत तारी ।—मारतेंदु ग्र०, यौ० अोपचीखाना= चौफ़ी । भा॰ २, पृ० ५१३ ।। पति:--सज्ञा स्त्री० [सं० उत्पत्ति दे० उत्पत्ति' । उ०-जल है फ -प्रव्य ० [अ० उफ या अनु०] पीडा, वेद, शोक और याश्चर्यभुतक थल है सूतक, सूतक ओपति होई एकवीर ग्र ०, सूचक शब्द । ग्रोह । उफ ! पृ॰ २८८ । अोवरी')--सुज्ञा स्त्री० [सं० उर्फ विवर) छोटा घर। छोटा कमरा । ओपना--क्रि० स० [स० विपन = सव बाल मुड़ाना, हि० ओप] कोठरी । उ०--(क) कागज के ग्रोवरी मसु के कर्म क गट । मांजना । साफ करना। जिला देना । चमकाना | पालिश - कवीर त्र , पृ॰ ३५० । (ख) विलग जनि मानो ऊधौ करना । उ०--(क) केशवदास कृदन के कोश ते प्रकाशमान, कारे । वह मथुरा काजर की ग्रोवरी में अवै ते कारे ।—सूर० चिंतामणि अपनी सो अपि के उतरि सी ।—(केशव शब्द॰) । १०५३७६२ । (ग) खिसि करि खिसी तु, निसीय को साथ (ख) जुरि न मुरे संग्राम लोक की लीक न लोपो । दान, सत्य, जैहैं, ओबरी के मेलत पगार जाइ चढी है ।-गम, पृ० ६२ । सम्मान सुयश दिशि विदिशा झोप --राम चं०, पृ० ३ । ग्रोवरी--सुज्ञा स्त्री० समूह । ढेरी । उ०—-हीरा को अबिरी नही अपना--क्रि० प्र० १ झलकना । चमकन । उ०-~जिती द्वैती मलयागिरि नहिं पति । सिंहन के लेहुडा नही साधु न चले हरि के अवगुन की ते सवही तोपी । सूरदास प्रमु प्रेम हैम ज्य, जमाति ।--कबीर (शब्द॰) । अधिक ग्रोप गोपी । -सूर (शब्द॰) । अोभना--क्रि० अ० [हिं० ऊभना] दे॰ 'ऊभना' । उ०--कोऊ कडू पनि --संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'ए' । कछ वृदावन सोमा । ताप भया अजगर भा -द ओपनिवारी- वि० [हिं० ओपन+बारी(प्रत्य॰)]चमकानेवाली। ग्र ०, पृ० २६१ । प्रकाशित करनेवाली । द्यतित करनेवाली । उ०- हँसत सुअा अोभा--संज्ञा स्त्री॰ [सं० शेवभा, प्रा०, प्रोभास] शोभा । काति । | पहे. ग्राई सो नारी । दोन्ह कसौटी पनिवारी ।—जायसी चमक । उ०—(क) होतहि छोटी प्रों क सोभा । देखो सखि ग्रं॰, पृ० ३५।। कछ औरहि ग्रोमा नद० ग्र०, १० ३३१। (ख) होत श्रोपनी- सज्ञा स्त्री० [हिं० श्रीप+नी (प्रत्य॰)] माँजने को वस्तु । मुकुरमय सवै तवे उज्जल इक अ भा ।---मारतेंदु ग्र०, पत्र या इंट का टुकड। जिससे तलवार या कटारी इरमादि भा० ३, पृ० ४५५ । रगडकर साफ की जाती हैं। उ०—केशोदास कुदन के कोश ग्रोम्---संज्ञा पुं॰ [सं०] १ प्रणव । अकार । २ ० 'हो' । तै प्रकाशमान, चितामणि अपनी सो ग्रोपि के उतारी सी । अरगोटंग --संज्ञा पुं॰ [मला० ओराग ऊजान = जगली मनुष्य, मर० –केशव (शब्द॰) । शोरागोटा कप ग्रीकृति का मनुष्य] सुमात्रा और बोनियो ओपम-सुज्ञा पु० [सं० उपमा, ग्रा० उप्पम ३० 'उपना' । ३०-- ग्रादि द्वीपो में रहनेवाला एक बदर या जनमानुप । पात बैंघिय कन्हू चप, इह पम झरि अपि !--पृ० विशेष—यह लगभग चार फुट ऊँचा होता है। इसका रग लाल रा०, ५।६७ ।। और भुजाएँ बहुत लंबी होती हैं। टॉमें छोटी होती हैं। यह भोपानी -क्रि० अ० [हिं० ग्रोप] दूध में धुएँ की गंध आना । बदर पेड़ो ही पर अधिक रहता है । इसके चेहरे पर वाज नहीं