पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर (भाग 2).pdf/१८८

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श्रो' १७०२ होते । चलते समय इसके तलवे और पंजे अच्छी तरह से जमीन रहने के भिस अई बकहि वेकामहि ।—तुलसी यू : पर नहीं पडते । यदि कोई इसे सताता है तो यह वही आयकरता पृ० ४३२ । से उसका सामना करता है। ऋोरहो - सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'होरहा' । श्रोर--संज्ञा स्त्री० [सं० अवार= किनारा २ किसी नियत धान के प्रोव- संज्ञा स्त्री॰ [देश॰ १ एक जाति जो प्राचीन काल में चपारन, अतिरिक्त शेप विस्तार जिमै दाहिना, वाँया, ऊपर, नीचे, पलामू अदि के प्रारूपास रहती थी 1 उ०- प्रोव अादि जाति पूर्व, पश्चिम गादि शब्दों से निश्चित करते हैं । तरफ । दिशा। 1 मे जाने की प्रथा चलती थी ।--प्रा० मा० १० यौ--और पोस = ग्रास पास । इधर उधर । । | (भू०, पृ०, 'घ')। २ ओरवि जाति की वोली या नापा ।। विशेष--जब इस शब्द के पहले कोई सख्यावाचक शब्द अाता है। शोरा--सञ्ज्ञा पुं० [सं० उपल, हि० सोला] दै० ग्रोला' । उ०—(क) तब इसका व्यवार पुल्लिग की तरह होता है । जैसे,—-घर के प्रो गरि पानी भया जाइ मिल्यो ढलि कुलि ।—कवीर चारों ओर। उसके दोनों प्रार। उ० -नैन ज्यो चक्र फिर | ग्र ०, पृ० २५६ । (ख) अोछी उपमान को गरूर और लौं चहु अोरा !-—जायसी ग्रं॰, पृ० ७५ ।। गरे घनानंद, पृ० ३५ ।। २- पक्ष । जैसे,—(क) यह उनकी ओर का अादमी हैं । (ख) हुम ओरा- वि० [हिं० श्रोला] उज्वल । उ०—-गोरे रंग अरे सु दृग अापकी ओर से वहुत कुछ कहेंगे । भए अरुन अनभग ।-पद्माकर ग्र ९, पृ० ५१ । । ओर’–सज्ञा पुं० १ अत 1 सिर । छोर । किनारा। उ०—(क) राना-क्रि० अ० [हिं० ओर (= अत) से नाम घातु का प्र० रूप] देखि हाट कछु सूझ न ओरा । सवै बहूव किछु दीख ने थोरा। अत तक पहुचना। समाप्त होना । खतम होना । उ०-(क)जो —जायसी ग्र ०, पृ० ३१ । (ख) गुन को मोर न तुम विखें चाहै जो लेय जायगी लूट ओराई - पलटू०, पृ० ६ । (ख) औगुन को मो महि ।---ज० ग्र०, पृ० ११ । नदी सुखानी प्यास और रानी टूटि गया गढ़ लका !-सं० दरिया, महा०—ोर अना= नाश का समय माना। उ०—हँसता ठाकुर पृ० ११२ ।। खाँसता चोर । इन दोनो का अाया शोर । र निमाना या ओराहना- सच्चा पुं० [हिं० उरहना] दे० 'उलहना' । निवाहना=ग्रत तक अपना कर्तव्य पूरा करना । उ०-- ओरिजिनल वि० [अ०] मौलिक । मून से संबद्ध । (क) पुरुय गृभीर न वोलहि काहू। जो वोलहि तो ओर निवाहू ओरिजिनल साइड-सच्चा पं० [अ०] प्रेसिडेंसी हाईकोर्ट का वह —जायसी (शब्द०) । (ख) प्रणतपाल पालहि सब काहु । देहू विभाग जहाँ प्रेसीडेंसी नगर के दीवानी मामले दायर किए दुह” दिसि ओर निवाहू --तुलसी (शब्द॰) । जाते हैं तथा उन मामलो का विचार होती है जिन्हे प्रेसिडेंसी ३ आदि । आरभ । जैसे, अोर से छोर तक । उ०—(क) और मजिस्ट्रेट दौरा सुपुर्द करते हैं। इन फौजदारी मामलों का दरिया भी कौन जिसका अर न छोर ।—फिसाना०, मा० विचार करने के लिये प्राय प्रतिमास एक दौर अदालत ३, पृ० १३० । (ख) और ते याने चराई पै अव ब्यानी वाइ वैठती है । इसे अरिजिनल जूरिस्डिकशन भी कहते हैं । मो भागिन ग्रासौं ।—पद्माकर अ ०, पृ० ३१८।। ओरिया--सच्चा स्त्री० [हिं० ऑरी+इया (प्रत्य॰)] ६० ओरी' । ओरती--संज्ञा स्त्री० [हिं० रमना] दे० 'अोलती' । उ० –रोवति ओरिया--सच्चा स्त्री० [हिं० र= सिरा] वह लकडी जो ताना भई न साँस सँ मारा। नैन चुदहि जस अोरत धारा ।। | तानते समय खूटी के पास गाडी जाती है । —जायसी (शब्द०) ।। झोरिया--३(gf- सज्ञा स्त्री० [हिं० और] तरफ । ओर। उ० -कव रमना--क्रि० अ० [स० अवलम्वन] लटकना । झुकना। ऐहैं स्याम व सीवाला हमरी कोरिया । -प्रेमघन०, मा० २, ओरना —क्रि० अ० [हिं०] दे॰ 'अोराना' । पु० ३६४।। अोरमा- सज्ञा स्त्री० [हिं० छोर से नाम घातु] एक प्रकार की सिलाई ओरी"--सज्ञा स्त्री० [हिं० ओर = सिरा+ई (प्रत्य॰)] अरती । जो अवठ जोडने के काम में आती है। अोलतो । उ०—(क) अोरी का पानी वरेंडी जाय । कडा विशेप-जब अवठों को मोड़कर कहीं सोना होता है, तवे दोनो दुई सिल उतरथि - कवीर (शब्द॰) । विठो की कारों को भीतर की ओर मोडकर परस्पर मिला। देते हैं। फिर आगे की ओर से सूई को दोनों अविठो या कोरी शोरी+--अव्य० [हिं० , री]स्त्रियों को पुकारने का एक सवोधन ।। विशेष–वृदेलखड में इस शब्द से माता को भी पुकारते हैं। में से छलकर ऊपर को निकाल लेते हैं। फिर धागे को उन और माता शब्द के अर्थ में भी इसका व्यवहार करते हैं। को के ऊपर लाकर मुई कालते हैं । । रिमाना--क्रि० स० [हिं० रमन] लटकाना। 30--तेल । । प्रोरी –संज्ञा स्त्री० [हिं० ओर] ओर। तरफ । उ०-हम तुम फुनेल चमक चटकाई । टेढी पाग छोर ओर माई -घट०, हिलि मिलि करि एक राग द्वे चले गगन की अोरी --जग० पृ० ३०० । श०, १० ७५ ।। शोरवना-- क्रि० श० [हिं० अरमना] बच्चा देने का समय निकट श्रोता--वि० [हिं० भोर+ौता (प्रत्य॰)] १ अत । समाप्त । २ अ जाना (चौपायों के लिये) । जैसे,---गाय का गोरखना । जिसका अंत या समाप्ति होने को हो । अति म । अंत का । शोरहना --संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'उलहुना' । उ०—ठाली ग्वालि शोती--संज्ञा जी० [हिं० ओरमना] झोलवी ।