पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(७४)


विदेशी भाषाओं के ‘तालीम' जैसे शब्द हम लोग समझ लेते हैं, परन्तु हिन्दी-व्याकरण में ‘अलम' का ज्ञान अर्थ बता कर फिर उससे ‘तफ़ईल' कर के ‘तअलीम' बनाना और फिर इसका हिन्दी में तद्भव ‘तालीम बनाना- बताना बहुत बे-मजे चीज है ! गोरख धन्धा है । अरबी का ‘सल्तनत' हम समझ सकते हैं; पर' इससे “दारुस्सल्तनत बनाने का विधि-विधान हिन्दी- व्याकरण में न किया जाएगा। हिन्दी का व्याकरण कोई तमाशा या भानमती का पिटारा नहीं है कि जहाँ सब कुछ हो ! इसे अप लेखक की कमजोरी तथा ग्रन्थ की कमी कह सकते हैं, मजे से कहिए । यह कमजोरी तथा कमी इस झन्थ को हिन्दी के तात्त्विक व्याकरण का रूप देगी, ऐसा अडिग विश्वास है । ‘बृथपुष्ट पोथा' अापके सामने रख दिया जाए और अप फिर बड़े धैर्य से सूख ले कर बैठे पछोरते रहें, मेरी चीज को; यह ठीक नहीं ! ऐसा मैं ऋषि नहीं कि घटाटोप में मेरे पृष्ठों की छानबीन लोग करते रहें ! उतना बड़ा पोथी पड़ा रह जाएगा और उसमें जो जरूरी बातें हैं, वे भी रह जाएँगी । श्रम सफल न होगी। इसलिए, बहुत काट-छाँट से काम लिया जाएगा । ‘काट-छाँट' को प्रयोग पुराने व्याकरणों को देखते; तत्वतः यों कहिए कि अनावश्यक तथा विजातीय तत्व ( ‘फारन मैटर ) दूर रखा जाएगा । ‘ना मूलं लिख्यते किञ्चित्, नाऽनपेक्षितमुच्यते ।। संक्षेप में यह किं हिन्दी का यह ऐसा व्याकरण बन रहा है, जिसे संक्षिप्त भी नहीं कहा जा सकता और पूरा भी नहीं कहा जा सकता; क्योंकि अभी और कुछ सोचने-करने की कदाचित् गुंजाइश है। परन्तु, इसमें सन्देह नहीं कि इसे हिन्दी का पहला व्याकरण लोग अवश्य कहेंगे । व्याकरण के मूल तत्वों को इसमें उद्घाटन हुअा है ! ये तत्त्व मेरी अन्य पुस्तकों में भी पहले श्रा चुके हैं; परन्तु यहाँ सब समवेत हो गए हैं; कुछ नए भी प्रकट हुए हैं। इन नई चीजों को ध्यान से देखने की जरूरत है। हमें कुछ बताइए, कुछ पढ़ा- इए, कुछ समझाइए । यह बात तो निःसन्देह सभी पाठक कहेंगे कि हिन्दी- व्याकरण का श्रीगणेश अब हो रहा है। यों, यह छोटे व्यक्ति का छोटा प्रयत्न, प्राथम्य की दृष्टि से, महत्त्व रखता है। इसे इसी दृष्टि से देखना- समझना चाहिए, बस ! कनखल ( उ० प्र०) । किशोरीदास वाजपेयी मार्गशीर्ष कृ० ११, २०११