| ‘में' तथा 'पर' विभक्तियाँ अधिकरण-कारक में काम आती हैं । जब
भीतर अर्थ विवक्षित हो, तब में और जब ऊपर' अर्थ विवक्षित हो, तो
“पर” का उपयोग होता है-“घर में राम है' और छत पर मोहन है ।' इन
दोनों ही विभक्तियों का प्रयोग अधिकरण-कारक में नियत है। ऋहीं विशेड़
प्रयोग भी देखा जाता है । अवज्ञा या मूढ़ता प्रकट करने के लिए ‘पर झा
ताद्य-प्रयोग होता है-दो रुपए पर ईमान खो दिया है। दो रुपए पर-
दो रुपए के लिए ! संस्कृत में भी चर्मणि हस्तिनं हृन्ति’ जैले प्रयोग हैं।
| को’ तथा ‘से विभक्तियों का प्रयोग-क्षेत्र बहुत व्यापक है। यह सुन
कारक-प्रकरण में ज्ञात होगा । संक्षेप से यहाँ देख लीजिए। 'को' का
शुरा---
कत-कारक में--‘को' विभक्ति
१---राम को घर जाना है।
२- तुस को एक लेख लिखना है।
३- मोहद को घर पर रहना है।
४---सोहन को दिन भर खड़ा रहना है।
ऊपर के दो वाक्यों में क्रियाएँ सकर्मक हैं और नीचे के दोनो में अक्ष-
भक ! “को’ का ही भाई 'इ' है:--
१-इसे अभी रोटी बनानी है।
२-से भर्तन साफ करने हैं।
. सर्वत्र कर्ता कारक में को’ ( तथा ‘इ) का प्रयोग है ! इ” संश्लिष्ट
विभक्ति है, जिसका दिवरण आगे श्राएगा ।
। “को’ कर्म-कारक में--
१-राम नेवले को देख रहा है।
२-नेवला साँप को देख रहा है।
३-मैंने तुम को समझाया
४.--तुम लड़के को कहाँ भेज रहे हो ?
‘को' सम्प्रदान •कारक ----
१- मोहन राम को पुस्तक देता है।
२–मैं ने मोहन को पुस्तक दी।
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