पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१७०

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| ‘में' तथा 'पर' विभक्तियाँ अधिकरण-कारक में काम आती हैं । जब भीतर अर्थ विवक्षित हो, तब में और जब ऊपर' अर्थ विवक्षित हो, तो “पर” का उपयोग होता है-“घर में राम है' और छत पर मोहन है ।' इन दोनों ही विभक्तियों का प्रयोग अधिकरण-कारक में नियत है। ऋहीं विशेड़ प्रयोग भी देखा जाता है । अवज्ञा या मूढ़ता प्रकट करने के लिए ‘पर झा ताद्य-प्रयोग होता है-दो रुपए पर ईमान खो दिया है। दो रुपए पर- दो रुपए के लिए ! संस्कृत में भी चर्मणि हस्तिनं हृन्ति’ जैले प्रयोग हैं। | को’ तथा ‘से विभक्तियों का प्रयोग-क्षेत्र बहुत व्यापक है। यह सुन कारक-प्रकरण में ज्ञात होगा । संक्षेप से यहाँ देख लीजिए। 'को' का शुरा--- कत-कारक में--‘को' विभक्ति १---राम को घर जाना है। २- तुस को एक लेख लिखना है। ३- मोहद को घर पर रहना है। ४---सोहन को दिन भर खड़ा रहना है। ऊपर के दो वाक्यों में क्रियाएँ सकर्मक हैं और नीचे के दोनो में अक्ष- भक ! “को’ का ही भाई 'इ' है:-- १-इसे अभी रोटी बनानी है। २-से भर्तन साफ करने हैं। . सर्वत्र कर्ता कारक में को’ ( तथा ‘इ) का प्रयोग है ! इ” संश्लिष्ट विभक्ति है, जिसका दिवरण आगे श्राएगा । । “को’ कर्म-कारक में-- १-राम नेवले को देख रहा है। २-नेवला साँप को देख रहा है। ३-मैंने तुम को समझाया ४.--तुम लड़के को कहाँ भेज रहे हो ? ‘को' सम्प्रदान •कारक ---- १- मोहन राम को पुस्तक देता है। २–मैं ने मोहन को पुस्तक दी।