पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१७७

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( १३२ ) निर्विशेष शब्द है । 'वन्य पुष्प में ‘वन्य' विशेषण है, और इस विशेषण को ‘भेदक' कहते हैं। सभी ‘विशेष वस्तुतः “भेदक’ ही हैं । अन्यों से भेद करते हैं । परन्तु तद्धितीय सम्बन्ध-विशेषण के लिए भेदक' शब्द रहना सुभीते की बात है। विभक्ति-प्रयोग से भी ‘भेद्य-भेदक’ भाव होता है । ‘वनस्य फलानि में बनस्य भेद है और “फलानि भेद्य है । 'बन्यानि फलानि और वनस्य फलानि एक ही बात है। ‘बन्यानि' की ही तरह ‘वनस्य भी भेदक' है, विशेषण है । एक जगह समानाधिकरण विशेषण या भेदक है- ‘न्यानि फलानि । दूसरी जगह व्यधिकरण विशेषण या भेदक है--'वन्स्य फलानि ।। हिन्दी भेदक ( विशेषण ) विभक्ति-प्रथेग से व्यधिकरण नहीं करती, सर्वत्र समानाधिकरण रखती है-- जंगल के फूल, जंगल की जड़ जंगल का ठेका, जंगल के मालिक संस्कृत में 'वनस्य पुष्यम्' और 'वन्दम् पुश्मू’ दोनों तरह से प्रयोग है। हिन्दी ने ब्यधिकरण-पद्धति नहीं रखी ।। भेद्य ( विशेष्ट्र ) के अनुसार ही ‘भेदङ्ग' ( विशेषण ) के लिङ्ग-वचन अादि रहते ही हैं- तेरा लड़का, तेरी लड़की, ते लड़के त्वदीयः पुत्रः, त्वदीया पुत्री, त्वदीया पुत्राः ( लड़की, लड़के, लड़की ( भेद्य ) के अनुसार ही तेरा, तेरे, तेरी (भेदक के लिङ्ग-इचन हैं ।) इसी तरह राम का लड़का, राम के लड़के, राम की लड़की, अपना लड़का, अपने लड़के, अपनी लड़की । ‘भेद्य' (लड़का, लड़के, लड़की) की तरह ‘म झा, ‘म के, ‘राम की” तथा “अपना-अपने-अपनी’ भेद-रूप हैं ।। प्रकृति-गत एकव-बहुल से मतलब नहीं, ‘भेद्य' के ही एकत्व-बहुत्व को यह महत्त्व प्राप्त है । देखिए--- तुम्हारः कपड़ा मेरे कपड़े राम की धोती