पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१८५

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‘अपादान' भी कारक । वह पत्ता पृथ्वी पर गिरा, तो गिरने का संबन्ध पृथ्वी से भी हुआ, इसलिए पृथ्बी भी कारक हुई–“श्रधिकरण' कारक । इस तरह कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, ऋदान्त तथा ऋधिकारख, थे छह कारक हुए। ये कारक विभिन्न विभक्तियों से प्रकट होते हैं। कहीं बिना विभक्ति ही कुछ ऊरक आते हैं। कारकों के साथ लगने वाली विभरिक को कारक-विभक्ति कहते हैं । क्रिया से जितका संबन्ध न हो, उसे इंकार नहीं कइले । राम का लड़का गोविन्द मुझे मिला था इस वाक्य में मिलने का संबन्ध विन्द से है और मुझ से है, परन्तु रास' का संबन्ध मिलने से कोई नहीं । इस लिए यहाँ राम कारक नहीं है । उसका संबन्ध एक कारक से है, क्रिया से नहीं है। ‘का' ( क + अ ) संबन्ध-प्रत्यय है । और ‘राम के लड़की हुई में 'के' संबन्ध-विभक्ति है। | संबोधन भी पृथक कोई कारक नहीं। 'राम, जल्दी आओ' यहाँ जिस का संबोधन है, उसी पर कर्तृत्व है। ‘कर्ता’ कारक में ही उस का ग्रहण है । राम, तुम्हे पूछ कहानी सुनाता है। यह वह कर्म कारक में रातथि है----गौण कर्म है। कहना' द्विष्फर्मक क्रिया है। मुख्य कर्म कहानी है, गौण कर्म’ ‘तुम्हें हैं, जो ‘राम' के लिए ही आया है। राम, अाज एक मजेदार घटना घटी इस बाक्य में रास' को, बात सुनने के लिए, अभिमुख ( मुखातिब ) मात्र किया गया है। उसकी क्रिया से कोई संबन्ध नहीं । इस लिए, संबोधन पृथक् कोई कारक नहीं । संबन्ध प्रकट करने के लिए के, रे, ने विभक्तियाँ और क, र, न तद्धित-प्रत्यय ईं; कहा जा चुका है।

कर्ता कारक

वर्तमान काल की कर्तृवाच्य सब क्रियाएँ अपना ‘क’ (फारक ) ने’ आदि विभक्ति के बिना ही रखती हैं। लड़का जागता है, लड़के जागते हैं, लड़कियाँ जागती हैं। ‘लड़का' में या' संश्लिष्ट प्रत्यय है, जिसे हम ‘घुविभक्ति' भी कहते हैं; क्योंकि यह संस्कृत के विरों का विकास है, जो विसर्ग अकारान्त पुलिङ्ग शब्दों में प्रथमा एक-वचन में) लगते हैं। लड़की' में 'ई' स्त्री-प्रत्यय है ।