पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१८६

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संस्कृत में नदी में स्त्री-प्रत्यय यो 'ई' है, उसके आगे विभक्ति देती है। ई’ कोई विभक्ति नहीं कहलाती । इती तरह यहाँ ‘लड़का में श्रा' पुंप्रत्यय समझिए । ‘बालक जाता है' में 'बालक' शुब्द उई ‘अ’ प्रत्यय से रहित हैं । | पु प्रत्यय ( 7 ) का विकास क्ष विभक्ति से है, रामः झादि के विसर्गों का विकास यह है; इसलिए हम ने विभक्ति' नाम भी दिया है। इसका प्रयोग संस्कृत के { बनूप } ‘बालक' आदि शब्दों में नहीं होता । यदि इस पविभक्ति को स्वतः भक्ति ही मान लें, तो भी कोई हर्ज नहीं है । ‘अ’ स्त्रीलिंग शब्दों में लालेली विभक्ति है, जो कि अकारान्त स्त्रीलिंग शब्द में हूँ बन जाती हैं-सड़कें नह' श्रादि । यह बिभक्ति बहुवचन में हुई अाती है। 'अ' तथा 'अ' को संश्लिष्ट विभक्ति माना जाए । यहाँ भक्क' से इमरः सतलव ने’ को ‘ते’ आदि विलिई विभक्षिय से है र ‘’ की जगह आनेवाली इ' विभक्ति से ! ये त्रिभक्तियाँ कता-कारक में नहीं लगतीं, जबकि क्रिया कर्तृवाच्य वर्तमान काल की --- बालक सोता है--बालक होते हैं वालिका सदेती हैं -बालिकाएँ सोती हैं। बालक रोटी खावा हैं-बालक रोटी खाते हैं। भविष्यत् काल में भी कता-कारक चैसी किसी 4 विभक्ति के बिना ही ऋता है बालझ सोग–वालक सोएँगे बालिका सोएगी-बालिकाएँ सोई बाल रोटी खाएर बालिका रोटी जाएगी। बालक रोटी खाएँगे-बालिका रोटी खाएँ विधि तथा प्रज्ञा आदि में भी वैसी कोई विभक्ति कर्ता कारक में नहीं लती- वालक पुस्तक पढ़े-~-बालिको पुस्तक पढ़े। बालक बुस्तक पढ़े- बालिका पुस्तक पढ़ें परन्तु ‘चाहिए' के योग से विधि सूचित की जाए, तब तो कक्ष में को या 'इ' विमुक्तिं लगेगी ही -