पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१४४)


निविभक्तिक ‘क’ कारक

कृत कारक की ही तरह ‘कर्म कारक भी अनेक जगह निर्विभक्तिक रहता है। जब विभक्ति का प्रयोग न करने पर भी कर्मत्व का बोध अवाध रहे, तब निर्विभक्तिक ही प्रयोग प्रायः होता है- १--भि पुस्तक लिखता है। २–रम दे यह पुस्तक लिख र वडा काम किया है। ३---व्याकरण बना कर अपने बड़ा काम किया है ४--आप पत्र लिख कर निश्चिन्त हो लें । यह निर्विभक्तिक प्रयोग रहेगा। ग्राम पुस्तक को लिखता है प्रयोग गलत हो जाएगा । हाँ, “पुस्तक को और अच्छा बना रहा है। हो भी सकता है। इसी तरह आप व्याकरण को बनाते हैं लत है ! व्याकरण को ठीक कर रहे हैं जैसा वैकल्पिक प्रयोग हो सकता है 1-'व्याकर ठीक कर रहे हैं तो ठीक है ही । परन्तु व्याकरण को बनाते हैं यादि एकदम गलत है। “आप व्याकरण बनाते हैं में किसी को भी भ्रम न होगा कि “व्याकरण' कर्ता है और याप’ कर्म ! व्याकरण आप को बनाता है कोई न समझ लेगा । ऐसी जगह ‘व्याकरण' कर्म ही सस+६ जाएगा । यही नहीं, “व्यकएर भाषा ठीक करता है यहाँ भी कर्म ( भाषा ) विभक्ति-निरपेक्ष है। औचित्य से, समय से तथा करता है। इस पुल्लिग-निर्देश से 'व्याकर' ही फर्ता समझ जाएगा और तब ‘भाषा फर्म है ही ! ‘मोहन पत्र को पढ़ता है। श्रादि में भी को व्यर्थ (अजागल-स्तन’ } समझिए । 'मोहन पत्र पढ़ता है ठीक । अनावश्यक अंग-वृद्धि किसे अच्छी लगेगी ? प्रेरणार्थक क्रिया में भी मुख्य कर्म, बैंसी स्थिति में निर्विभक्तिक ही रहता म! बचे को दूध पिलाती है। मालिक नौकर से काम कराता है। तू माहेद से चिट्ठी लिखाता है। ‘पिलाती है' की तरह पिलाए गी’ ‘पिलाए' आदि भी सभझिए । जब गौए प्रयोग में ( सकर्मक क्रिया का } *कर्म कर्दी की तरह प्रयुक्त होता है, क्रिया अकर्मक हो जाती हैं, तब इस गौण ‘कदा' में भी विभक्ति नहीं