पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१९०

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लगती---‘कपड़े सिलते हैं ‘रोटी बनती है। भूतकाल में भी यही स्थिति रहे । यह विषय यथास्थान और स्पष्ट हो जाएगा । | कृत तथा कर्म की तरह ( कभी-कभी ) अधिकरण भी निर्विभक्तिक रहता है---‘मैं घर मिलूंगा' 'तू उस जगह रहता है । अधिकरणत्व स्पष्ट है। इस लिए ‘में यः पर' देना अनावश्यक और इसी लिए बेमजे । इसी तरह ‘तु मेरे हाथो पिट जाए गा' में 'करण' । ‘हाथों) निर्विभक्तिक है। 'हाथों का मतलब स्पष्ट है-'हार्थों से' । ‘से लुत समझिए । विभक्तियों के विविध प्रयोग जब जरूरत हो, तभी विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है । रजाई अपने पास है, जाड़े में ओढ़ेंगे । सदा ही श्रोढे न फिरेंगे । 'ने' विभक्ति केवल कर्ता कारक में लगती है, जब कि क्रियः सकर्मक हो और भूतकाल में प्रयोग हो; यह पीछे एक जगह बतलाया गया । इस विभक्ति का प्रयोग अन्यत्र कहीं भी नहीं होता-न किसी अन्य कारक में और न कर्ता की ही अन्य स्थिति में ! बहुत नपी-तुली स्पष्ट स्थिति है। यह भी क्वहा गया कि गत्यर्थक क्रिया के भी भूतकाल में कत 'ने' विभक्ति नहीं रखता । अन्य सकर्मक सभी क्रिया के भूतकाल में कर्ता 'ने' विभक्ति के साथ रहेगा- राम ने काम किया राम दे कपड़ा लिया राम ने पुस्तक ली लोगों ने ने' को करण-कारक की विभक्ति गलती से समझ लिया हैं ! 'ने' का 'करण' कारक से कोई सम्बन्ध नहीं ! परन्तु एक जगह सकक क्रिया का भूतकाल में ऐस? अयोग मिलता है, जहाँ 'कर्ता' में 'ने' विभक्ति न लगता और वह क्रिया गुत्यर्थक भी नहीं है. म पुस्तक लाया लड़की फल लाई लाना’ क्रिया सुकर्मक है, गत्यर्थक भी नहीं है और भूतकाल भी हैं। परन्तु फिर भी कतई नै विभक्ति से रहित है। यह क्या बात : वह निदम झहाँ गया ?