पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/१९२

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( १४७ } ‘अ’ को जई हिन्दी मे धातु बन कर ले लिया, तो ‘निया धातूपसर्गः ' की सन्धि इसे न भूल? ? संकृत ३ उपसर्ग छ; पूर्व यह होनहैं, परन्तु दह संस्कृत नहीं, हिन्दी है और वह उन भी धातु-रूप में है । धातु और उपसर्ग की सुधि हैं- धनु : ' अस मले। पूछ रही} } सन्धि में धातु का स्वर उई उई और लू ‘अ’ में जा ग्निाला एक संकु चालु बन गई; ऐ जारों वर्षों तुझ झि झ ४ान ही उधर *

  • * थे द ईशल कर के हैं। इन !- इन। अर्थ ३ ३ । चीन में

र मिला देने से ले द न हो । नुन लें: पल्लु रसना तः ना ि हड़ इ ६८ ! * च दे ॐ ॐ । इसी तरह, अर्थ-द में जाना था कि ' धानु न्यु ६; न्ह ४ ' हैं । यः भ द * ? * में में हैं। ६ ८६ अथ श्र’ अन्त में हैं । तब उसी के अनुसार शब्द- | इ दम् भूक राक्ष काशी या--लड़ की घर भई 'अना' क्रिया इत्यर्थक है और ‘कृ’ तथा दर कमें हैं। संस्कृत रायः झार्शम् अदः--बालिका गृहम् अारात तृतीयान्त नहीं, प्रथमान्त कता-कारक हैं । रार पुस्तक ले कर काशी या वाजिक कंवर ले कर बर आई इन्हें । छर देने पर ---- ६ क पुन्नु जा इञ्जि अन् । ९१३ दिवस् भिििक कहे। इस तरह छ । सऊ* : * अद । उह, उती लिम भै । उल्नु व झी पृलों में इस ह निश्रम की व्याख्या ६ कर* याद ही बता देना vि * *ल' सञक तु ऐसी हैं कि इसके भूला में भी कृत 'ने' चिह्नि से इश्ति ही झाती हैं ।