पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२०१

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( १५६ ) ४-मुझ ले वह सब कहते न बनेगा ! ५--तुम से वह कल न सीखी जाएगी । यदि आत में असामर्थ्य विवक्षित न हो, काम ही दुष्कर हो, तब कृत में से' का प्रयोग न होगा- १-कई बार प्रयत्न करने पर भी कवीन्द्र श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर को फारसी लिपि ने आई २-अंग्रेजी अपनी वर्तनी के कारण बहुत लोगों को ठीक-ठीक नहीं श्राही ! | यह कर्म-दाच्य क्रियाएँ हैं । कृत कार* *को' विभक्ति के साथ हैं। संस्कृत में सर्वत्र तीसरी विभक्ति चलती हैं, ऐसी जगहू-विद्दुभिरपि दुरूहा लिभिषा चा नाश्ते ' हिन्दी में ‘से' तथा 'को' विभक्तियों के प्रयोग- भेद की का विशेषता है, वह वहाँ नहीं है । सर्वत्र तृतीया चलती है ! गौण झनै भैः और कर्म में से विभक्ति प्रसिद्ध ही है-राम से मैंने सब कह दिया' | ‘इना क्रिया द्विकर्मक है। मुख्य कर्स निर्विभक्ति रहता है। और गण कर्म में से विभक्ति लगती हैं । प्रेरणार्थक क्रियाएँ जब द्विकर्मक होती हैं, तब भी गौरा कर्म में से विभक्ति लगती हैं, यदि क्रिया उस { गौणझम यानी प्रयोज्य कर्ता ) के लिए १--अंग्रेजों ने दूसरे देशों में वह सब कर लिया, जो चाहते थे । २-क्षेठ जी ने उस गरीब से लेख लिखवा कर अपने नाम से छपा लिया । यहाँ प्रत्यक्षतः लेख दूसरे के काम आया है, भले ही उस के बदले कुछ पारिश्रमिक मिल गया हो ? लिखने की असली फल ( श्रेय } अन्यत्र है।। अन्यत्र ‘को' का प्रयोगमा बच्चे को रोटी खिलाती है । मनोभावों के आलम्बन में; प्रभ, नेह, बैर आदि मनोभावों के आल-

  • नों में भी से' विभक्ति लगती है-