पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२०२

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१-राम से गोविन्द की स्नेह है। ३-- ऊधव से माधव को बैर न थी ३- कोई-कोई सभी से ईष्य रखते हैं। ४---सन्त से कोई क्यों बुरा मानेगा, या बैर करेगा ? बुरा मानना भी मनोभाव ही है। ऐसे स्थलों में से' का वैकल्पिक प्रयोउड़ है ! अधिकरणत्व की विवक्षा में ‘पर भी- १–राम र गोविन्द का स्नेह है। २सन्त का प्रेम सब पर बराबर रहता है। मत चैर? 'ईष्य' झादि के लालम्बनों में ‘से' का ही प्रयोग होता है । कभी कोई ‘पर लगा कर नियम उड़ा दे, यह अलग बात है ।

  • आदर’ का लम्बन बड़े लोग होते हैं और स्नेह का छोटे । 'म

बराबर वालों में चलता है । ‘मा का बच्चों पर स्लेह' होगा, बच्चों से नहीं । 'मैं राजर्षि का आदर करता हूँ। 'मेरा राजर्षि से' (या ‘राजर्षि पर) आदर न होगा । यदि बैर-प्रेम आदि के आलम्बन परसर दोनो हों, तो फिर मैं विभक्ति लगेगी- साँप और नेवले में बैर हैं। राम और गोविन्द में परस्पर स्नेह है' में' का अन्वय उभयत्र है । लाभ, प्रयोजन आदि के योग में जिस से किसी का कुछ प्रयोजन या लाभ बताना हो, उस के साथ से' विभक्ति लगती है- १—म से गोविन्द का कुछ प्रयोजन है। २----गोविन्द से राम को क्या लाभ ? ३-उस से मुझे क्या है। ‘मुझे क्या मैं वही बात छिपी है । इस तरह के अनन्त प्रयोग भाषा में चलते हैं, जो यथास्थान समझे जा सकते हैं। चलती भाषा के प्रत्येक शब्द का प्रयोग-दर्शन कुछ आवश्यक नहीं है। जगह भी नहीं ! दिग्दर्शन मात्र चाहिए ।