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सम्बन्ध विभक्षियों पर विशेष

सम्वन्ध-भिन्न का नया विवेचन है। इस लिए यहाँ और अधिक समझ ले कि जरूरत है। राम के लड़ी हुई है पाक्यों मैं जब लोग प्रगति न बैठा पाते है, तो वः मैं जैन कोई शब्द ला कर वहाँ बैठा देते छ । ऋइते थे.. ' का मतलब है-'म के श्रर में। यह इस लिए कि

    • झा 'लक' समहु ल इत’ था । “राम की लड़की की ऊरह
  • * लर्फ कैसे ? परन्तु इ रू चर ची है ! कोई श्री कहती हैं--बहन

गुरे ८६ लेक हुआ और अस !’ बह वह अपने प्रशव की बात कह रही हैं । त्रः यहाँ भी घर में श्री लगेगा ! तब अर्थ क्या होगा ? वह अपने प्रसव की चर्चा कर रही है, किसी दूसरी स्त्री की कोई बात नहीं है। सो, “बर में' जैसी अध्यार प्रयत्या किया जाता था ! भूल से लोग करते थे । ध्याहार को अश्या होता ही हैं। जब स्वारस्य से अन्त्र नहीं होता, तो इ-तोड़ करना जरूरी हो जाता है-अध्याहार आदि की शरण लेनी ही ए है। दन्तु अब छह चीज सामने आ गई कि के, रे, ने हिन्दी की सम्बन्ध-विभक्तियाँ हैं, तद् फोई अड़चन रहती ही नहीं है ।।

  • म के लड़की हुई ‘सुशीला के लड़का हुआ यह पितृ-पुत्र' तथा

मातृ-पुत्र सम्बन्ध है । ‘सुशीला के क बकरी है राम के चार गौएँ हैं? बई ‘सुशाला’ और ‘बकरी में स्म’ और ‘स्व' का सम्बन्ध हैं और यही सम्बन्ध राम्' तथा 'गौएँ' का है । सम्बन्घ-त्रि में विभक्ति है । | परन्तु अब ‘प्रव’ का प्रयोग हो, तब सम्बन्ध-विभक्ति से काम न • ले ! दचे तु-कर्म सम्बन्ध रहे- देवकी ने पुत्र अरूख किया यशोदा ले कुन्या पास की यई सत्र बैंसे इंटी ? ‘प्र क्लन्?' छु है । हुँदा ॐ ॐ इटहरी र भूत में नई हैं। यदि इस' कसं होता, तो ‘प्रसव ' क्रिया के अनुमर पुल्लिङ्क-एक वचन रहतीं । ‘कन्या प्रसव के । छ न लिया हैं। शोदा कता-कारक है यहाँ । सुद्ध हुई ऐसा प्रयोग न हो । कृत-झारक में ‘युशोदा में से निभक लगेश । ने’ कृत-कारक बाली