पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१७४)

( १७४ ) संसार के प्रत्येक पदार्थ का कोई न कोई नाम या संज्ञा लोकव्यवहार के लिए भाषा में निश्चित है । इन •ज्ञों के वर्ग वा श्रेणियाँ बनाना चाहें, तो संसार के सभी जड़-चेतन श्वों का दिल करके उन के वर्ग या श्रेरियाँ अनाना वरूरी होगा---'अर्थभेत् शब्दभेदः' । अर्थ के जितने भेद होगे, शब्द उतने ही अंदा में विभक्त हो जाए राइ । हिन्दी में जाति', 'व्यक्ति तथा 'भाव' शब्द उन विभागों के लिए रखे गुवा हैं । वस्त्र' जानि-वाचक शब्द हैं। शुक्ल वस्त्र में शुक्ल' शुण्ड बत- लाता है ! ‘शुलत’ श्वेतिमा आदि गुण-वाचक संज्ञाएँ हैं, जिन्हें हिन्दी में भाभ्यान्त्रक संज्ञा कहते हैं । म गोविन्द आदि शब्द हिन्दी में व्यक्ति वाचक संज्ञः' कहलाते हैं। करना खुना’ पीना अादि कृदन्त-क्रियाएँ पुर्विभक्ति से युक्त हैं; इस लिए ‘लझा' जैसी संज्ञाओं के समान चलती हैं। हिन्दी में इन कृदन्त किया-ब्दों को ‘भाववाचक संज्ञा' कहते हैं । ‘भाव यहाँ धात्वर्थ मात्र का बोधक है । ‘करता है” करती है' से जान पड़ता है कि क्रिया झा करने वाला पुरुष है, स्त्री हैं । करेगा श्रादि से करने का काल मालूम देता है। परन्तु करना जाना’ ‘ना’ प्रदि क्रिया-शब्दों से “पुरुष लिङ्ग” “बचन' आदि कुछ नहीं बाना जाता ; क्रिया-मात्र प्रतीत होती है। इस को ‘भाइ' कहते हैं । भाइप्रधान क्रियाशब्दों के रू संज्ञा-शब्दों की ही रह चलते हैं - क्रियाभिनिवृत्तिवशोपचातः कृदन्तशब्दाभिहितो थदा स्यात् । संख्याविभक्तिव्यथलिङ्गबुकः भावस्तदा द्रव्यमिवोपलक्ष्यः । भव' ( घात्वर्थ) जव सिद्ध-अवस्था में कृदन्त-शब्दों के द्वारा प्रकट होता है, तब उस में द्रव्य' की ही तरह ( ने’ ‘को’ आदि ) विभक्तियाँ लती हैं, 'वचन---नैद उस तर होता है और स्त्रीभेद भी वैसा ही १.पुस्तक पढ़ने से ज्ञान बढ़ता है। २---हम चैत्र में कुल पद : ३—राम को बहुत काम करने हैं।