पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२३

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चंद्रोदय से पूर्व सभी हिंदी व्याकरण में संस्कृत शब्द ( तल्लम ) जो हिंदी में व्यवहृत होते हैं उनके नियम नहीं दिए गए क्योंकि तत्कालीन शिक्षा- विभाग की भाषा संबंधी नीति यही थी कि वे तत्सम शब्दों को हिंदी मानते ही नहीं थे और तत्सम-प्रधान हिंदी को वे एक नए उच्च हिंदी ( हाई हिंदी ) नाम से पुकारते थे। 'नवीन चंद्रोदय' इस दृष्टि से हिंदी का पहला व्याकरण था जिसमें तत्सम शब्दों के लिये भी नियम दिए गए थे। ‘नवीन चंद्रोदय' के तीन वर्ष पश्चात् सं० १६२८ ( १८७१ ई०) में काशी नगर के पादरी एथरिंगटन साहब ने विद्यार्थियों की शिक्षा निमित्त भाषा भास्कर' नाम का एक हिंदी भाषा का व्याकरण बनाया। पं० विष्णुद की सहायता से रचित इस व्याकरण की लोकप्रियता इसकी उसता का प्रमाण है। यह व्याकरण की पुस्तक बहुत दिनों तक छात्रोपयोगी व्याकरणों में सबसे अधिक प्रामाणिक मानी जाती रही।। ‘भाषा भास्कर' से पूर्व भी अब्ध देशीय उच्च शिक्षाधिकारी विलियम हैंडफोर्ड की आज्ञानुसार शीतलप्रसाद गुप्त हेडमास्टर गवर्नमेंट स्कूल उन्नाव ने “शब्दप्रकाशिका' नामक व्याकरण ग्रंथ सं० १९२७ ( १८७० ई० ) में नवलकिशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित कराया। सं० १६३२ (१८७५ ई०) में राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद ने बनारस से अपना ‘हिंदी व्याकरण प्रकाशित कराया जिसमें उन्होंने हिंदी व्याकरण और उर्दू कवायद को निकट लाने का प्रयास किया। राजा साहब हिंदी और उर्दू को एक ही भाषा मानते थे जिनके बीच की खाई भिन्न लिपि और भिन्न शब्द-भंडार के कारण निरंतर बढ़ती जा रही थी। व्याकरण की एकता के माध्यम से वे इस खाई को पाटना चाहते थे। उनका विचार था कि हिंदी उर्दू में भेद पैदा करने वाले डा० गिलक्राइस्ट के पंडित और मौलवी थे जिन्हें उत्तरी भारत की अन-सामान्य भाषा का एक व्याकरण लिखने को कहा गया था। मौलवी लोग संस्कृत से पूर्णतः अनभिज्ञ थे और देशभाषा आर्यभाषा परिवार की है यह बात भूलकर अरबी और फारसी के आधार पर एक नया व्याकरण बना गए। दूसरी ओर पंडित वर्ग ने देश भाषा पर सेमेटिक प्रभाव की पूर्व उपेक्षा कर संस्कृत व्याकरण का आधार मानकर व्यकिरण का निर्माण किया। 1. The absurdity began with the Maulvis and Pundits of Dr. Gilchrist's time, who bking commissioned to make a grammar