पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२४८

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{ २०३ } ‘दो कविर्यों का सम्मान प्रयोग होता है; पर “बस-दम्पति का सम्मान प्रयोग न होगा--'बम-दम्पति का सम्मान प्रयोग हो गई। यद्द ‘दम्पति' शब्द से ही हिच प्रकट हैं; इस लिए ' विफर न झए गा, न ‘दो विशेष अाए । ] दो मिल कर एक हो गए हैं, जो पृथक् समझे भी जाते हैं। कृत्रि' आदि में यह बात नहीं । “जोड़ा था' की तरह के वन्दन प्रय} भ ‘इन्वति' का न हो गा–दम्पति ऋथा न चला जाएगा । संस्कृत की द्विवचनतः सामने हैन ! सई, “दम्पदि शार' चलता हैं । यदि पति-पत्नियों के अनेक जोड़े हैं, तो “ विकरण झए ग-सौ दम्पतियों के अमन की सूचना है’ ‘ब्राश-दन्नति को कुछ विशेषतः दी गई थी। इत्यादि । | हिन्दी में अनेक रडू से संस्कृत-इशब्दों को ले कर अपना प्रतिक बनाया है; पर प्रभुलल? 2श्मा-एक वचन की हैं "पिट’ ॐ बहुवचन तिरः के सिग छट कर हिन्दी ने अर्थ-धि में पितर' प्रतिदक अपना बना लिया: पर बहुवचन में ही यह भी इस का प्रयोग होता है। संस्झने में ‘दिर जैसी कोई विशिष्ट शब्द न है ।। परन्तु यह झई अनिवार्य नियम भई कि संस्कृत-बहुवचन शुब्द को जब हिन्दी अपना प्रातिपदिक बना ले, तो उस का प्रयोग यहाँ बहुवचन ही हो ! पितर' का बहूवचन-शेर तो ठीक; क्योंकि सृष्टि के श्रादि से अब तक न जाने कितने हमारे पूर्वज हो चुके हैं। परन्तु हिन्दी में संस्कृत नाव: के विंर्ग का कुर 'नाव' अपना प्रातिपदिक बना लिया ! ' का ६- प्रत्ययान्त ‘नौका' भी यहाँ चलता है और उसी (नौ) का बहुवचन--रूप 'नाव' भी निविस हो कर भाव’ रूप से बद्ध प्रातिदिक हैं, जो टूक वचन में भी चलता है और वहुवचन में भी; पर 'द' की स्त्रीलिङ्गला ज्यों की ल्य ई-नै नसते! नावे | बहुवचन में 'नौला अधिक दृध हैं। विशेश-विश्लेषण | संसार के अन्त प्राणियों के सथ पदार्थों के नाम या मंशा ( आव- श्यकता के अनुसार यथाशक्य ) निश्चित कर लेने पर भी व्यवहार में कमी रह जाती है; क्र्योंकि प्रत्येक प्राणी या पदार्थ में कुछ विशेषता होती है । पृथ्वी फोड़ कर ऊपर निकलने वाले हरे-भरे अर्थों या पदार्थों का नाम इभिङ' रखा गया । पृथ्वी को उभिन्न कार के इन का जन्म होता है; इस