पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२५

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भी इस बात को मानते थे और हिंदी उर्दू की खाई मिटाने के लिए प्रयत्न शील थे । परंतु इससे एक नया विवाद उपस्थित हो गया कि हिंदी उर्दू दो भाषाएँ हैं या एक राजा लक्ष्मण सिंह ने रघुवंश के अनुवाद की भूमिका में सं० १९३५ १ १८८७२ ई० ) में अपना स्पष्ट मत व्यक्त किया कि हमारे मत में हिंदी और उर्दू दो न्यारी न्यारी बोलियाँ हैं। सितारेदि के व्याकरण के बाद लिखे गए व्याकरण ग्रंथों में भी स्पष्ट दो परंपराएँ मिलती है, कुछ व्याकरण तो हिंदी और उर्दू को एक भाषा मानकर लिखे गये, कुछ हिंदी को पूर्णतः स्वतंत्र भाषा मानकर । सं० १६.३४ ( १८७७ ई० ) में मुजफ्फरपुर के बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री का हिंदी व्याकरण विहारबंधु प्रेस, बाँकीपुर से प्रकाशित हुश्रा जो हिंदी उर्दू की एक मिला-जुला व्याकरण था और दो झिल्दों में छ । खत्री जी ने व्याकरण के पाँच खंड किए थे----पहला खंड-वर्ण विचार–प्रार्थोग्राफी ( Orthography), दूसरा---- शब्द विचार----इटीमोलाजी ( Etymology), तीसरा वाक्यविचार-सिनटैक्स, ( Syntax ) चौथा-चिह्न विचार---पंक्चुएशन ( Punctu- ation ) और पाँचवाँ खंड-छंद विचार---प्रोसोडी ( Prosody )। छंद-विचार दूसरे जिल्द में छपा था जिसमें हिंदी और उर्दू दोनों के छंदों का निरूपण था, शेष चार खंड पहले जिल्द में छपे थे । दूसरी ओर सं० १९४२ ( १८८५ ई० ) में बाबू रामचरण सिंह का ‘भाषा प्रभाकर' खड्गविलास प्रेस, बाँकी पुर् से प्रकाशित हुआ जिसका संशोधन अंबिकादत्त व्यास ने किया था। यह व्याकरण विशुद्ध हिंदी का व्याकरण था । लेखक ने प्रथम पृष्ठ की पाद टिप्पणी में ही लिख दिया था। | इस हिंदी भाषा' शब्द से लोग यह न समझे कि मुसलमानों की भ्रष्ट की हुई भाषा, जिसे उर्दू कहते हैं, वहीं यहाँ मानी गई है। नहीं, कदापि नहीं । उस भाषा का मूल संस्कृत से कोई प्रधान संबंध नहीं रखता परंतु और भाषाओं से अनेक शब्दों का संग्रह करके भी वह उस फारसी और अरबी के बल से स्थिर है, जो नितांत विदेशी भाषा है। इसलिए उस त्याज्य भाषा


- -- --- -- philology to speak of Urdu and Hindi as two different languages. John Beaas' Comparative Grammar of the Moder Afan Tanguages. ( Page 32.}