पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२५२

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संस्कृत में नहीं कर सकते; विशेष को निर्विभक्तिक नहीं रख सकते; क्योंकि ‘इन’ विभकि 'राम' से एकदम से दिलष्ट हो गई है, बँध गई है। वहाँ से छूट फर वह ‘सुन्दर' में भी आ लगे, यह नहीं हो सकता । हिन्दी की पद्धति अलग हैं---म, गोविन्द और माधव ने मुझ से कहा था ! मतलब ‘राम ने, गोविन्द ले र माधव ने। यानी एक ही ‘नै सर्वत्र काम चला देगी। इसी लिए पृथक्-पृथक्-‘राम ने, गोविन्द ने और माधव ने यो 'ने' का तिंगा कुछ अच्छा नहीं लगता; यद्यपे गलत नहीं कह सकते हैं सीना अल हैं। परन्तु द्विशेष्य इस तरह विशेश से आए नई र सम्झतः । इस लिए

  • मधुर चे फल ले मैं तृप्त हो गया ऐसा सविभक्तिक अंश-प्रयो! एकदम

गलत होगा । पहले कहू? जा चुका है कि हिन्दी के 5 प्रत्यय में शुक शब्द थे इ यद्धति पर दले दूसरे शब्द बहुवचन में तो एकान्त होते ही है; अन् क वचन में भी मकान्त हो जाते हैं। यदि सकते हैं, ॐ श्वादिं कई विभक्ति हो---‘घोड़े ने घाछ नहीं खाई। इसी तरह ाकारान्त पुशिशेषण भी १ विशेष्य की ही तरह ) एकारान्त हो जाए ---‘काले घोई ने श्रास नहीं खाई। श्रीकारान्त पु वर्गीय विशेषण के अरिक्त अन्य सभी विशेषण्ड, सर्भ कार में, दोनो वचनों में और दोनो व ( लिङ्ग ) में सदा एक-रस लाल घोड़ा, लाल डे, लाल घोड़ी, लाल , लाल धेड़ियों, लाल गाड़ी, लाल सूरज, लाल झुन । सर्वत्र ‘लाल' । इसी तरहः-- लाल घोड़े पर, लाल झरी पर, लाल ब्रदर र । . कहीं कुछ भी परिवर्तन नहीं । पीली, काल आदि की तर काल भी विभक्ति से इला’ क्य न कुः १ इस लिए कि 'लाल' क लग पहले से ही है । इल’ भी ‘लाल हो जाता; तो ‘लाला बैल है' इत्यादि में भ्रम होता । इसी तरह लार्ड में हैं । “लाल ब्रज में लड़की । दुसरे, 'लाज' अन्यत्र ( दूसरे देश } : वाद हैं; 'नील' जैसा अपना नईं ! इसी तरह शाही मइल, शाही गरेलियाँ घरेलू नौकर, घरेलू चर्चा, आदि