पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२१८)

{ २१८ ) विशेष के साथ ‘स' ते 'ली' का प्रयोग भी होता है--यह छोटा- सा लड़का क्या करेगा ?” 'टो-दो होटो है का’ ब्रजभाषा में । ब्रजभ-काव्य में इन ‘ट राजस्थानः झलक है; जैसे अवधी ‘मानस में ‘फास-रूप केहि कारन या' में खड़ी बली' का 'या' है । ब्रजभाषा में

  1. संज्ञा प्रकारान्त हुई रइत हैं-‘स सॉक्रो नगीना है। (परिशिष्ट में

अॐ दे1ि } ‘छोटी-सी एक कुटी बन में हैं। छोटी ही छोटी-सी'। इसी तरह छो-लो’ समझिए। कुछ कोमल छा गई है । संस्कृत में

  • इड' अव्य ‘ायालं%ारे आ जाता हैं -- *क इव' सागर तरिष्यति कपिः !

कौन-सा बन्दर समुद्र पार करेगा 'इ' की ही तरह यह ‘सी’ सादृश्य-बोध भी करता है, स्वाना में भी श्रोता है, उत्क्षा भी करता है-- ५--सर-छा मन केभल है; परंतु कर्तव्य में बला कठोर ! २-यह देखो, एक नदौली दिखाई देती है । ३----अड़ा दर्द हुआ ! जान-सी निकल गई । साधारणतः कह सकते हैं कि संस्कृत में ‘इच’ अव्यु जिउने काम करता है, हिन्दी में यह ‘सा भी उतले ?–र में ही सब–काम करता दिखाई देता है । अन्तर यह है कि 'वा' अव्य नहीं है। इसे व्यय मानना बड़ी गलती है---रूप इसके बदलते हैं। संस्कृत के 'सम' की यई तद्भव रूप है । ‘सम तद्रूप भी हिंदी में इलता है; परन्तु उससे संभावना-उत्क्षः छादि की व्यंजना नहीं होत्तः । न वह छोटा-सा की तरह विशेषणों को ही अलंकृत करता है। इन सब काम के लिंद ही सा’ अलग निकला है । 'सम' के ‘म’ का लो और अंत में पुंविभक्ति–सु, से, सः । सन' ( तद्रूप ) संस्कृत-शब्द में विभक्तिं न लगे; परंतु ‘स त त हो गया न ! यहाँ पुंत्रिभक्ति अवश्य लगेगी । 'मिष्ट' का मीट होते ही पुविभक्ति लगती है---‘मीठा घनी श्रछा लगता है। श्री पनी अच्छा लाता है' न होराः । *मिष्ट ६ सिको न ता १' लेगा। इसी तरह धुन सुन्न' होगा । तद्भवू धन सा' हेर, श्रन-स' नहीं । | सरीख पर थे कुछ प्रासंगिक बार्ने । यहीं यह भी कह देना ठीक है, था कि सब जानते हैं कि रूप का विषय विशेषण से भिन्न है । 'राम सौंदर्य-सागर है यह रूपक है । उपमान का में प्रथोर विशेष की ही लंड होता है। दुनिया क्या ही बाग है और