पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६५

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( २२० ) विशेषण तो सभी हैं ? ‘विधेय-विशेषण भिस की विशेषता पर जोर देता है, वह क्या ‘विष्य, नई है ? राम अच्छा पढ़ता है' में 'अच्छा' ( विशेषण ) झा विशेष्य पढ़ना' क्रिया है। सो, ‘विशेष्य-विशेषण' नाम गलत है। विधेय-विशेष’ और ‘उद्देश्य-विशेषण’ नाम ठीक हैं। प्रविशेष विशेष के भी विशेष होते हैं--‘बहुत अधिक पढ़ना भी अच्छा नहीं होता 'अधिक' विशेषण है और उसका भी विशेषण है बहुत' । इसे विशेष करून चाहि । इसे 'अन्तर्विशेषण' हा करते थे, जो अन्वर्थ नहीं; भ्रामक भी हैं । संस्कृत में व्यकिरण विशेष भी होते हैं----भरारस्य जनाः प्रायः श्रुताः भवन्ति । यहाँ ‘जनाः कर व्यधिकरण विशेषद् 'नगरस्य' है ! इसे समानाधिकरवा से नारः जनाः प्रायः धृतः भवन्ति' भी बोलते हैं। परन्तु हिन्दी में शहरी’ और ‘शहर के दोनो ही 'समानाधिकरण' हैं। शहरी में स्पष्ट विशेषता भरी है । राजा के घोड़े को मैं ने देखा । यहाँ राजा का शब्द घोड़े का भेदक हैं। ‘राजकीय अश्व’ और ‘राजा का अश्व' एक ही बात है। ‘रायः अनः--राजाको थोड़ा। राज्ञः अश्वः' कह देने से इतना अन्तर अवश्य आ जाता है कि विधेयता दबती नहीं है । अयं राज्ञः अश्वः अस्ति' को अर्थ राजाश्वः अस्ति' कहना ठीक न होगा। स्वामित्व की त्रिवेता साल में दब जाती है। यदि विधेयता विवक्षित न हो, तब जाान्ति '--.-५ के घोड़े घूम रहे हैं। समागत् भेद-भेद्य भी ठीक होगा । हिन्दी में शाश्त्र अच्छे हैं” होता ही नहीं । राजा के घोड़े अच्छे हैं। चलता हैं । यह भेद्य-भेद चीञ पहले बतलाई जा चुकी है। | अभी-कभी पूरा वाक्य का वाक्य किसी का विशेष होता है---‘वह लझा आ गया, जिस ने उस दिन सभा में वह कविता सुनाई थी । उत्तर अन्य लड़के के उद्देश्य-विशेष' है । कभी-कभी अनेक वाक्य किसी एक के लिये बन जाते हैं । सो, यइ न समझना चाहिए कि विशेषण ‘शुब्द ॐ होते ईं। पूरे वाक्य श्री थिए होते हैं।