पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२२१)

{ २२१ ) विशेष और भाववाचक संज्ञा विशेषण से भाववाचक संज्ञा और भाववाचक संज्ञा से विशेष या

  • मैदक' तद्धित-प्रत्ययों के द्वारा बनाने-चलाने की प्रवृद्धि भाषा में हैं। दूसरी

संज्ञा से भी भेदक-विशेषण' शब्द बनते हैं. भारत से भारतीय और

  • हिन्दुस्तान से हिन्दुस्तान' आदि। परन्तु यहाँ इमें केवल ‘सत्राच*

संज्ञा का जिक्र करना है ।। | चिशेध से बनी भाडाचक दुर्य आदि में फिर सुय्यवान विशेषण बनाना एकदम मूर्नसा है ! सीधे चन्दूर' का ही प्रयोग हो गा । पन्दु दन्त ज्ञान' आदि भाडाचक संज्ञा से ज्ञान' श्रादि, अनन्त त्रि- | बनते-चलते हैं। राम में ज्ञान है' और 'राम झा ' शुक्र हैं। बाल हैं । प्रयोजन-भेद से उभयविध प्रयोग होते हैं-~-समान स्थिति में इच्छानुसार ।। | इस देश में निरक्षर न रहेंगे । और-~- इस देश में निरक्षरला न रहे । इन दोनो वृक्कों में कितना अन्तर हैं ! निरक्षरता का मिट जादा एक बात है और निरक्षरों को मिट जान दूसरी चीज हैं ! इसी लिए तो भाड़ में विशेषण तथा भाववाचक संज्ञा-शब्द की पृभृक्-पृथक् छोटे हैं । चने की जगह चले काम आईं थे और बेसन की जगह बेसन चने का बेसन बना लें गै-- विशेषण से भाववाचक संज्ञा बना गे-- चतुर-चतुराई, निपुश-निपुश्ता परन्नु ननुर' ने फिर विशेषण चतुराई वाला' न बने ना ! बेलन से फिर चुनै न बने थे । यह सब तद्धित' का विषय है । विशेषता प्रकट करने के लिए निसर्गतः भवचक संज्ञा से विशेषण जरूर बनाए जाते हैं--‘राम खून अश्यनइंदिल हैं' । अध्ययन भाववाचक संज्ञा से श्रध्ययनशील विशेष बना लिया, विशेषता प्रकट करने के लि। 'अध्येता ॐ बहू बोले न बो अध्ययनल मैं है । अध्ययनशील' की जगह हिन्दी की पढ़न भाववाचक संज्ञा से पढ़नेवाला नहीं चल सकता ! महल ही में निकले गा । पढ़ाकू बहुत भड़ः ! अवज्ञा में पढ़ाकू कह सकते हैं—‘दड़ा पढ़ाकू चना है।