पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२६७

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( २२२ } इसी तरह संज्ञाशों से भी विशेषण बनाए जाते हैं—“प्रज्ञावान् जन दूर इक दृष्टि रखते हैं। पहले हम लिख आए हैं कि संस्कृत के 'सुन्दर’ ‘मधुर'-'मूर्ख' आदि विशेषण; हिन्दी में सुन्त-रू, रहते हैं---विशेष्य के वचन' या 'ब' का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । सुन्दर बालक’ ‘सुन्दर बालिका । सुन्दर बालक पढ़ता है सुन्दर बालक पढ़ते हैं। इसी तरह मूर्ख बालक' और

  • नूवं बालिका' आदि। सभी अकारान्त विशेषणों के लिए यह सीधा मार्ग है।

। परन्तु संस्कृत के व्यञ्जन्त विशेषणों के रूप वर्गभेद से भिन्न हो जाते हैं---विद्वान् बालक'--'विदुषी कल्या' । ‘विद्वान् कन्या' अच्छा नहीं लगता । इसी तरह गुणवान पुत्र' और ' ‘गुणवती कन्या'। 'महती वृष्टि' जैसे कम प्रयोग होते हैं, तो महान् दृष्टि भी अच्छा नहीं लगता । इसी लिए बड़ी बरसा हुई वुन बरसा हुई’ ‘अत्यधिक वर्षा हो गई जैसे प्रयोग होते हैं।

  • महही वृ’ अच्छा न लगने का कारण यह हो सकता है कि हिन्दी में महत

का प्रयोग प्रशुः समास में ही अधिक होता है—महामूर्ख, महापण्डित, महाराज, महोदय, महाशय, इत्यादि । इस का फल यह हुआ कि 'महा' शब्द ही लोग विशेष रूप से लिखने लगे-हाय सखा दुख पार महा, तु अए इतै न, किदै दिन खोए !” “खड़ी बोली में भी बोलचाल में--- 'अरे, यह सहा नालायक है ।' यों विदेशी शब्द तक का विशेष महा लगा देते हैं। इसी प्रवृत्ति से बुढ़िया महा कंजूस है' यों भी बोलते हैं । यानी 'महा' को तद्भव मान कर प्रयोग चलते हैं। पुंवर्ग में तो महान् पडित है' चलता ही है; “ी महती विदुषी हैं नहीं बोलते । ‘महाविदुषी इँचता हैं । वती’ छादि प्रयोग अच्छे लगते हैं; क्योंकि लड़कियाँ ‘ज्ञान- ती विद्यावती' आदि नामों से दिन-रात पुकाई जाती हैं। उद्देश्य-विशेषण, विधेय-विशेड़ तथा क्रिया-विशेषण के प्रयोग में साव- धानी नञ्चित है। नीचे कुछ उदारवा लीजिए--- १~ अच्छी पुस्तकें खरीद २-युस्तके अच्छी दो दोनो इ विशेष उद्देश्य-रू है; परन्तु दूसरे उदाहरण में अच्छे पर जोर अधिक है। यह एर-प्रयोग का फल है। प्रथम उदाहरण में उसी किशोर के पूर्व-प्रयोग है; साधारण ।