पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२७०

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( २२५ ) केन’ के 'इन' का रूपान्तर } सुझड़े ही सब झूम दूर हो गए } १६.३० आते-आते मैं वेधड़क हो कर ‘राम ने पुस्तक पढ़ी जैसी क्रिया को ‘कृदन्त झर्सवाच्य' कहने लगा; दबंगोपन से उताने लगा ! श्राचार्य द्विवेदी ने भी मेरे मार्ग की पुष्टि कर दी ! तई और भी हिम्मत बढी ! अागे १९४३ में ‘ब्रजभाषा या व्याकुरराष्ट्र प्रकाशित कराया, जिस में हिन्दी के सभी व्याकरण पर सुविस्तृत विचार कर के कहा किं हिन्दी का कोई फरए अभी तक बना ही नहीं है ।

  • तिङन्त'-'कृदन्तु क्रिया का पूरा विश्लेषरा यहाँ हुआ। श्रागे फिर राष्ट्रभाषा

का प्रथम् व्याकरण' लिखा, तः बार और भी 2 हो गई । परन्तु मेरी पुस्तकें जिन लोगों में अब तक ६ नहीं पढ़ी हैं, वे उस अन्धकार में हैं। हिन्दी- व्याकरण' में दुरु' की ने भी राम ने रोटी खाई’ को ‘कान्य शिक्षा । अब मैं ने वैर्भः क्रिया ई कृदन्त बताकर कहा कि ॐ वैसी क्रिया कर्मवाच्य हैं, तच अले संस्कर में संशोधन भी किया गया कि पहले से भी अधिक झमेला बढ़ राया ! पइले ६८%था जब कतरे के अनुसार ड्रो, कर्ता के अनुसार उस के लिङ्ग-वचन श्रादि हैं, तो कर्तृवाच्य कहलाती है। यह लक्ष लिद कर भी राम ने रोटी खाई’ को ‘कर्तृवाच्य बतलाया जाता था । *हिन्द-व्याकर' के संशोधित संस्करण में यह प्रतिपादन हुअा--- राम ने रोटी स्वाई’ कर्तृवाच्य, कर्मयि प्रश् ।' क्या समझै १ कोई क्या समझे ? मैं ने कहा था कि राम हे रोटी खाई स्पष्ट कर्मवाच्य है, कर्तृवाच्य’ नहीं । फर्म के अनुसार झिंया ई-खाई।

  • गुरु जी ने संशोधित संस्करण में “कतृवाच्यु' ( अपना } रख शौ कर्मणि

इयोग' मेरर लिया ! उन का कहना ह कि यहाँ मरि प्रयोग हैं, किं कर्म के अनुसार ३ र अन्य' है ! “कमेन्टि धन्यग' है अौर ऋदाच्य है । 'शुई नमक की तरह है और मीठा है' का जाए, तो क्या समझा जाएगा ? उसी सुरह “गुरु जी का संशोश्न है ! पहले लिख चुके थे-‘एम ने रोटी खाई कुर्तृवाच्यु, तज्ञ ञ उ झवन्य जैसे लिखते हैं परन्तु यह भी लिख दिया कि क्रिया कर्म के अनुसार है---“कर्म रिए प्रयोग है---'म ने होट खाई ।। ऊपर उदाहरण-रू मैं गुरु जी का उल्लेख किया है। यह प्रवृत्रिं बीसवीं शताब्दं के इस उत्तराद्ध में भी हिन्दी-जत् में चल रही है। दो और