पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२२६)

( २२६ ) दो ‘तीन' या 'पॉच' याद कर-कर रहे थे ! बतलाया गया कि देखो, ये दो र चे दो, मिल कर चार' हुए; जिन लो । तब याद करने-कराने लग--‘द और दो होते तीन ही हैं; पर ‘तीन’ को कुछ लोग ‘चार' भी कहते हैं ? यानी चार’ को इम' “तीन' कहते हैं ! यही बात कृदन्त क्रिया और विशेधश की है । या तो लोग अब भी समझ नहीं पा हैं और या जान-बूझ कर भ्रम फैला रहे हैं । कृदन्त क्रिया और विशेषण की स्पष्टता कृदन्त क्रिया का और कृदन्त विशेषण का स्पष्ट विभाजन है। जब क्रिया में प्रधानता हो, तो उसे ‘ विपण' कहना गलती । “भावप्रघानमाख्या- तम्-क्रिया ई प्रधानता में आख्यात होता है । अाख्यात’ को हिन्दी में ‘क्रिया-पद' कहते हैं । क्रिया-प्रकरण आगे आएगा । हिन्दी की भी । संस्कृत की ही तरह } तिङन्त-क्रियाएँ पुलिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग में समान रहती ई-म पढ़े' सीता पढे । उभयत्र ‘वढे' है । ‘राम चतुर है' सीता चतुर है। उभयत्र 'है' समान है । परन्तु कृदन्त क्रिया में पुंस्त्री-भेद होता है---- १- राम अाया हैं-सीता श्राई है २-म आता है'सीता आती हैं। यह 'या'-'ई' कृदन्त क्रियाएँ हैं और 'है' तिङन्त क्रिया है, सहक रूप से, काल-विशेष द्योतन करने के लिए । यही बात ‘ाता-“श्राती में तथा 'है' में है। थानी थे कृदन्त-तिङन्त संयुक्त-क्रियाएँ हैं । “ना” मुख्य क्रिय है और 'है' सहायक | सत्कृत में भी इसी तरह-बालकः सुतः अस्ति-

  • लिको सुखा अस्ति, कृदन्त-तिरुन्त संयुक्त-क्रिया चलती हैं। ‘सुप्तः-

‘सुस” कृदन्त और अस्ति' तिङन्त । ‘राम आया है' में केवल है' क्रिया नहीं है---या है” क्रिया है। श्राने का विधान है; क्रिया पर जोर है। यदि क्रिया पर जोर न हो, विधेयता अन्यत्र हो, तब ‘कृदन्त-विशेषण समझिए. आए हुए रास को काम सो आई हुई सीता को काम सौंपा यहाँ ‘या’ कृदन्त-विशेषण हैं । “प्रार’ ‘या’ का ही रूप है। 'आ' को '५' और यू म लोप । विभकि अगे को है; इस लिए ‘अ’ को ‘ए’