पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२७२

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{ २२७ ) हो गया हैं। 'आया’ का छी-लिङ्ग रूप ‘ग्राई”-'सीता' का विशेषः । यहाँ “अथा' कृदन्त विप्र हैं; किं वाक्य में ‘अने’ को विवेयता प्राप्त नहीं हैं। यानी “श्रावा' में क्रियात्व रहने पर भी उपसर्जनीभूत है। परन्तु-- राम आता हैं-सीता आती है। क्रियाएँ कृदन्त-न्ति ( संयुक्त) हैं । अता-‘अती' कृदन्छ मुख्य किया हैं और हैं' तिन्त, सहायक क्रिया । यहाँ ता’-आती विशेष प्राम-सीता के नहीं हैं; क्यों ने पर जोर है, अने” का ही विधान है। यदि ऐसा न छी, इना' उपसर्जनीभूत हो जाए, तो विशेषण अहाँ आएका हुअ म दिखाई दिया यहाँ दी हुई सीता दिखाई दी है। यह दिखाई देना मुख्य क्रिया है। ‘श्रता-प्रातः विपशु हैं 'राभ- सीता' के । इन विशेषों में भी क्रिोश है; पर उस पर बिबवत नहुँ हैं । विधेयता हैं ‘दिखाई देने’ र । दंत में भी प्ति : अन्न सुप्तः अन्ति सीता अत्र सुता अस्दि इन वाक्य में ‘सुतः सुहः' कृदन्त क्रियाएँ हैं •और ‘अस्ति' सहायक सुहं रामं तत्र भयम् उपविष्टा सीत; तत्र श्यम् ( सोए हुए राम को मैं ने वह देखा ) १ बैठी हुई सीता को उड मैने दे । यहाँ सुन' तथा 'उपविध्' विशेष हैं राम और सीता” के । जो लोग राम आता हैं ‘राम अाशा है' ब्रादि में श्राहा' अथा' को विशेष समझे बैठे हैं, धे-राम आया 'सीता आई जैले वृक्षों में आ करें गै ? यह क्रिया कौन-सी है ? आया 'ई' को तो वे विशेष हे में २८ ! 'ई' क्रिया का अश्याहार भी नहीं; क्योकिं सन्न भूतकालु , सामान्य भूतकाल का प्रयोग हैं । 'है' लगा देने से हो सामान्य भूत झाले