पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२७३

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( २२८ ) रहे गा ही नहीं, आसन्न भूत हो जाएगा । तब क्रिया कहाँ ? सब भ्रम-जाल है, और बड़े लोगों में है; इस लिए इतना लिखना पड़ा ।। विशेष' और भेदक बिशेष झी झी तरह भेदक का भी प्रयोग होता है । जैसे विशेष विशेष्य ही तर चलता है, उसी तरह भेदक' -भेद्य की तरह । संस्कृत में कहा है- ड्युत्पतिस्तु भेदकात्’ सृष्टी विभक्किं भेदक' में लगती है। विशेषण की ही तरह भेदक भी भेद या व्यावृत्ति करता हैं । ड्का हुा' कडूने से पता नहीं चला कि किस के लड़का हुआ ! परन्तु ‘भेदक' से भेद खुल जाता है--- रामस्य दकः अभवत् ( राम के लड़का हुआ ) दव बालिका क्षेत् { है। लड़की हुई श्रारमनः चतलः कन्याः सन्ति { अपने चार न्याएँ हैं) सर्वत्र ‘भेदक' में षष्ठी { संबन्ध-विभक ) लगी है । रन्तु द्धित-प्रत्यय से 'भैक' कहा जाता है, तब उसमें ‘विशे’ क्ला भ्रम हो सकता हैं- त्वदीया या पति तेरई अन्या पढ़ती हैं। त्वदीयाः पुत्राः पठन्ति तेरे लड़के पढ़ते हैं। यह वदीया कन्या' और 'तेरी कन्या' में त्वदीथा' तथा 'तेरी' भेदक हैं, कन्या के । “कन्या भेद्य हैं । इली तरह बदीवाः” तथा “तेरे भेदक हैं। पुत्राः तथा लड़के में कें । कन्या पढ़ती है लड़के पढ़ते हैं' कहने से