पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२९५

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और आगे चल कर ग्य' शब्द गौ-अर्थ ग्रहण कर लेता है । तित है लिली चीज ( चिलई, देह } । 'तैल' नाम सिला; परन्तु आगे अर्थ-टिस' भए । र, ल, रेडी छादि किसी भी चीज से शिल्प दिन के ' ( ल } ले लो । “धिकई मात्र सामान्य रुग्ण ले र इद : ब । इसी तरह व्य’ :ब्द भी समझिए । परिवर्तन डा :--: । क्रिया- विर *दपूर्वक झादि भी अव्यय झाले २१; कि, इन 5 रूप ; सद्द एल रहे हैं। व्यावी में एक === है। कु छ होता है । जहाँ एकत्व की कोई स्थिति-विक्खा नहीं, च भी कर देता है. संस्कृत में नपुत्रुकलिङ्क और हिंदी में दुलिङ्क । रामः निपुते की तरह सीताऽपि निपुणुमधीते । हिन्दी में अ न्च्छा पढ़ता है और शीत! भी अच्छा पड़ती हैं । “अच्छा' में कोई व्य-परिवर्तन नहीं । इज लिए ये क्रिया-विशेष भी अव्यब' । कुछ लोगों ने उल्टा ही झक लियः । ‘क्रिया-विशेष अव्यय होते हैं का भूत- लब समझ लिया.---'अव्यय क्रियाविशेषण हैं। व्याझरों में ऐसा लिख म दिया और अब इतन' ती हाँ वहाँ आदि अव्ययों को भी क्रिया- विषयों में रख दिया ! वायव्य भी कोई क्रिया-विशेषण हो सकता है; यह और बात है । परन्तु अब-तब तथा “यहाँ-वहाँ अादि से तो क्रिया में कोई बिशेषता मालून न देत ! तब ये क्रिया-विशेषण' कैसे ? बही भ्रम ! ला-फ़र में जब ाि -विशेष की चर्चा श्राए गी, तब यह सब विस्तार से बदला जए गा ! “जब्त ' त अाँ-वहाँ झाद शब्द समग्रवाचक तथा स्थाना-वाचक अव्युत्र हैं, जिन्द छ उद्धा सवला से है। ये सब ‘तद्धित-प्रक्रिया से बने हैं । संस्कृत में ददत लघः अत्र-तत्र ग्रादि से संज्ञा-विभक्तियाँ न छात: बुन्दी में द्र-तत्र ऋदि के आने से' जैसी विभुक्तियाँ १-ॐ ॐ इस बात का ध्यान रखना २-- इ ले राक्ष बाबर पढ़ रद्द है। ३ र दुरी र मन्दिर है। ४०००६ में दम घों का एक महीना हो वा ।। परन्तु १ लि लय र ४ } शब्द के रूप में कहीं कोई परिवर्तन नई; इसी लिए थे अब्य’ हूँ । संस्कृत में यदा-तदा' तथा 'अत्र-तत्र