पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२९६

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दिं तद्धित शब्द के रो ज्ञा-त्रिभक्षि यद्य िनई ऋत; परन्तु अन्य तद्धित-शुब्दों के आगे ? है अौर बैंसी स्थिईि में 5 इ शुल्द को अन्याय' ही लुई या हैं । ' , आर ऋदि के प्रभु जिऊ इन में जरू?” भई लात हैं और फवचन' ही सदा रहता है। इस { म परेन । कर छ । आलं “अद६ का ६ । गया के बहु जित ! २३ - यौन तो झाई हु; के विभॐ ल ई । लिने हो ? ब्ल्यू * * न । पाणिनि के तद्धितहलांव-नि:' का ५ ---द्धित मन्यन्त ॐ कुछ शब्द अच्युई हैं, जिन के अ ब नी, ६ ¥?ई बिक्रि झा के है। इस सत्र की व्याख्या करते हैं:फ ने सर्वत्रिका ॐ थिः --- ब्द ॐ ॐ धूर निक्ति न झवा झल, द्विवचन बत ; ॐ = * न ा झर'. माद । “ हु न् २., वा छिः अब भ६.६४ नमक डिदि थरूलें, किन्वेचनान्यद धन्, ह. तद्धितःन्य : ४ि फलतिरूल उलू %ि *ति तु इद्र * # धन न हो कर दा • अझन ६ दिन में , उसे अन्य सः ल हे सभी तत-शब्दों के अन्यत्र गृह सच लिं; ए हैं। परिंदानं झांशु . कइ र निर्देश कर दिया गया है कि ये इतने होड-शब्द्ध हैं। यही थिति हिन्दी में है । इल्तुर थइ ईतना कि संस्कृत में अव्यय से ये विचि कह रही है वह है; दिन्दी में लौड़ नहीं होता, विकि सामने रद्द है । भखर हैं। दूसरी हुई है पनी भाग-भेद ।। | इस' साग-भेद छ न समझकर ¥िन्द ॐ कई छ दिन * कर * जड़ जाते है; अन्न 'यार' को याद रूस करते हैं । ने ६िनी के एक बड़े बिदा के मुख से न हैं -~-सद कल नै र यज्ञ दर्रा का र २ ।' छ ' । ॐ ॐ ऐ बाल ; सदी में' को न सुन्न* दा झाव में प्रयोग ! न ले ल८, ॐ काम चलता नहीं है और हर ले रहु की चिंच होता है; इ लिए आई झाल’ जा कर छान चलः ! परसदामें ‘क’ ते पहले