पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/२९७

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ही बैठा है। सदा काल’ बहुत भद्दा प्रयोग है ! यह सब उन हिन्दी- व्याकर' झा परिभ है, जो संस्कृत के अधार पर लिखे गए हैं। क्षेत्र हू कि हिन्दी में अब अादि के आगे से आदि विभक्ति अाता है; परन्तु सदः एकवचन ही रहता है और प्रकृति में कोई विकृति { परिवर्तन ) न होने से उनका अवयव अप्रतिहत रहता है । हिन्दी की सुन बोलियों में यही स्थिति है---अब के नाथ मोहिं उदार' । राष्ट्रभाषा में ब की बार गुन्हें पुरस्कार भिले' । विभक्ति से परिवर्तन नहीं, किसी सरे व्यय से अ६ जरूर---अभी' 'तभी' श्रादि।। द्धिव की ही तरह चे हृदन्त शब्द भी अव्ययों में ही गिने जाते हैं, जो सदा एरस रहे हैं। संस्कृत में भी ‘कृ’ ‘कर्तुम् आदि कृदन्त शब्द व्य माने गए हैं । हिन्दी में पढ़कर' दि पूर्वकालिका तथा “पढ़ने अगा' श्रादि में पढ़ने' आदि झियार्थक क्रियाएँ अव्यय श्रेणी में हैं। क्योंकि इनके रूप सदा एकरस रहते हैं । संस्कृत के अन्यत्र भी हिन्दी में चलते हैं; परन्तु जहाँ अपने’ अव्यय स्थिर कर लिए गए हैं, वहाँ किसी भी दूसरी भाषा का-संस्कृत का भी- कोई अव्यय नहीं चलता ! संस्कृत के ए, श्रो, हे, रे श्रादि संबोधन-श्रव्यय हिन्दी में भी चलते हैं। न’ भी ज्यों का त्यों चलता है । परन्तु 'ही' अवधारणार्थक ‘अपना अव्यय है; इस लिए संस्कृत का' ‘एव’ यहाँ कतई नहीं गृहीत है । राम ही जाए गा' आदि में ही की जगह किसी भी भाषा का कोई अव्यय न चले दा; तलम् हि भी नहीं । इसी तरह भी हिन्दी का अपना श्रब्यय हैं, समुच्चयर्थिक----राम भी चले गा” । यहाँ भी की छह अपि था चस्कृत-अन्याय नहीं रखे जा सकते । हिन्दी को वो अन्य संस्कृत के ' झा ही विकास है; परन्तु तो भी, ‘तो’ की जगह 'हु’ झr भी न आए । संस्कृत का ‘सुदा अव्य हिन्दी में चलता है; परन्तु ‘साम्तम् आदि नहीं । कभी-झ सम्प्रति आ भी जाता है। परन्तु यदा

  • ऋदि नहीं आते । “अब तुम श्राए' की जगह यदा तुम आए' नहीं

हो सकता और ‘कद तुम जाओ को छदा तुम जो गे नहीं कर सकते ! सदा' इह लिए चलता है कि इस की जगह हिन्दी का अपना कोई अव्यय है ही नहीं । कुरुदांगट ( करनाल रोहतक आदि ) में “यदा-कदा' को छ अद' जैसा झोला जाता है। कुछजनपद ( मेरठ-मण्डल ) में ‘द' को