पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३०२

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हिन्दी के अपने अन्य ‘चाई” भले और ( संयुक) भले ही श्रादि बहुत अधिक हैं। सब का निर्देश यश्च सम्भव नहीं है । ककनी अव्यय ॐ झिी संज्ञा ऊो भ्रम हो जाता है ! भई अन्य को लो; भाई का ल*प समझ बैठते हैं ! ' गलती हूँ । लेि पुदी में कहता है-ई, मेरे कूते का म यह नहीं हैं। थ *भाई का अर्थ कई ॐ ? यह भई सँस्कृत के 'भो' ॐ वं झा जान पड़ता है। इसी तरडू चाहे छिर-डिरूक ५ हैं। इसे लश क्रिया सफ ले हैं। वह छ । जा में नृहे न जाऊँ' : है न जा आ रहे हैं कुरे बन्न चाहे ॐ वा चाहें, से हो सकता है। चाहें तो भी इ स न । ' थ” “खा' इ धान के बने यिा -पुद हैं; रू-बर्तन स्पष्ट है । ” अश्य * *ज्ञा दिशेश झा का ही हाल है ! * * * * * क’, ‘नू भले ईई मुझे अश्र दे' इयदि प्रयो३ ॐ भुले' ( विधि- पक) अन्यत्र हैं। संस्क़ में ऐसी गई कामु अल्य श्रादा हैं । -प्रतिङ, विरे- प्रयक तथा क्रिदृ-पिक आङ दाइ । होनें हैं, उन्हें संझ लेना चा!ि उन्हें संज्ञा, दि. वास* लेना चाई। हिंस' संस्कृत का कि-शुरूङ वय अहम्' के अर्थ है-त्वाम् अनि घन्सि'मैं तुझ से इनः है । इ अहि -रूझ अश्यय हैं। अब्ध इस लिए कि इसके लक्ष दल नई इसी तरह ब्रज एक में हों क्रय-प्रतिपक अव्यय ' के अर्थ में हैं--- सम् कछु और मैं कुछ और है। समझ । इङ ह” के रूप में है न । ** ॐ मेरे अदि रूप शे; पर ॐ कभई ६ । ' या ६ को जैसे प्रयोग न हो गे । न कोई मूल्य, न विभक्ति ।

    • ' अन्न हे कि ‘अभी' में 43 ही हैं, क - झी :
  • भी है। अ ' में ही हुई अवधार- अ दभुत है-
  • sxs भी भय है और अभी भी समय ॐ' प्रदः समानार्थक अदाय हैं ।।

यसको हिन्दी में संस्कृत के उस की लत छु र इन्ट्री में अपने ; दो- एक उपग अनाह हैं। इन उत्तर के -इए' मग है । संकृद में एस अव्यय में एल क्लर भी इन कवि और नी हैं ।