पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३०४

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साथ कोई उपस नहीं लगता है क्रियाएँ हिन्दी की सब तद्भव है; इस लिए संस्कृत के उपसर्य तो स्वभावृतः लग ही नई अझते; पर हिन्दी के

  • अपने नि' 'उ' जैसे उरसर भी नहीं लगते । “उठता है' में 'उ' उपसर्ग

हो और ठता है क्रिया हो; ऐसी बात नहीं है । उता’ कोई क्रिया नहीं,

  • कोई धातु हिन्दी का छन । एक हृवस्वर अकेले या किसी व्यञ्जन

को साथ ले कर हिन्दी का कोई भी सार्थक शब्द अनता दिखाई नहीं देता ! अव्य 'कि' जैसा कोई इब्द अपद व मल सकता है ! दीर्थ स्वर अबइय सार्थक शब्द के रूप में आता हैं—अल के और किसी व्यंजन के साथ भी ‘राम इधर अ' र 'राम अवर जा' । 'अटलः । ॐ उद' धातु हैं, जो *ि उत्था' फ़ा तद्भव रूप है। उत्थी' ॐ ॐ का काढ़ और था का ‘ठ विकास । यों उठ' धातु है; किसी हिन्दी घातु में हिंन्द का उ उपसर्ग नहीं है। हाँ, संस्कृत के कृदन्त *अज़ार-विहार' आदि से प्रहार करता है” “विहार करता है' में संयुक्ष-क्रिया अवश्य उपसर्ग ले कर दल हैं; परन्तु ये उपस जहं के ताँ ‘प्रार' आदि लट्प संस्कृत शब्द में ही | हिन्दी के भाई अपना माल आदि योग :भालना क्रिया को पूर्वाश ‘सम्’ उपवर्ग के विकास में से संवदित रूर हैं । परन्तु इसे भी यहाँ उपसर्ग न कहा जाएगा। पूरी क्रिया सँभालना हैं। ‘भालना' हिन्दी में कोई क्रिया-शब्द नहीं है। संस्कृत में ‘भालु’ घातु अवश्य है, जिस के दिन्छ प्रयोग तो दुर्लभ हैं; परन्तु कृदन्त 'जगत् सर्वे केन वा विनिभान्तिमु आदि प्रसिद्ध है। यहीं भालू मुल्वर ऋो कर हिन्दी में देख-ल' अदि के रूप में अता है। केवल भाज' का प्रया नहीं होती संस्कृत में सम्मालित इ त्रं द्रव्यम्-६ दना माल सँभाल लिअ ) चला है। इसी सम्भाल्ने छ। हिन्द ने हुँभाल’ अना लिया है, जिसे कई वान्त्र या इंति है । हो, हिन्दी में सँभाल धातु है---भल नहीं । “भाल है अवश्य; परन्तु उस का प्रयोग ‘देख के साथ होता है-देख-भाल । नती हैं। प्रया नह; इस लिए हिन्दी के सँभालता हैं आदि में हैं ( हिन्दी का उपस भाषर तथा अवधी आदि में बरत' ( जोर से चलता हैं, धधकता है ) तथा निहारत' जैसे क्रिया-ल है। ये संस्कृत प्रज्व>पर नि