पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३०६

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( २६१) हिन्दी ने दूमरी पद्धति पकही है। रामः दुशान् संहति' का मतलब तो टीम पर रामः फलानि श्राहराते और समफलानाम् याहारम् करोति' के अर्थ मिन्न पड़ जाते हैं। 'आहार' शब्द देख कर 'राम: सलम् आह- रति' को कोई रामः फलानाम् श्राहारम् करोति के अर्थ में बोले. तो गलत हो जाएगा: "श्राहार' तथा बाहना में श्रन्तर है। हिन्दी ने यह सब मेंकट दूर सखी है । हो, म मात्रा श्रादि में साहित्यिक प्रयोग जरूर होते हैं- स्या' संहारत प्रभु दनुजमदा आदि। ये प्रहार संहार' श्रादि से बनाए प्रयोग न्दी में मया-त्रिशाम के अन्य निकले हैं, उन में की मजेदार बातें देखने को मिलता है ! हिन्दी में कोई भी अपना' शब्द लन्न नहीं । न्द्रिी के पद, कर, मर, लिम्प श्रादि वे भी धानु-शब्द गलन्द हैं, जिन्हें मम देख रहे हैं ---अकारान्त है! परन्तु वे लोग भी पता करता है। जैस रूपों में ही क्रिया-पद लिखते हैं। दो मह 'प' आदि का हलन्त (व्या- नात) पढ़ बतलाते है ! हो कि ये सब पाइलल है तो फिर पद्धता है है जैसे क्रियापद रिली; 'पढ़ता है। करता है क्यों लिखते हो? तो, कहते हैं कि लिखने में अन्द्र में श्रा मिलता है। कहा से मिलता है। क्यों ना मिलता है ! नाय में यह केन्द्र समझा कि पड़' श्रादि धातु 'हलन्त है १ कोई उत्तर नदी, उत्तर ब्रहो कि पर लन्त मानते है।" मान्छे हा तम! इन्दी कारान्त, यनान्त नया विवाति शमी पर सार-नोट कर लेती है, उसके सिर में मायाविशानी यद कार चोप र कम दि हलन्त शान है। मही नहीं, घर. पाच पट आदि संशा- कोमो थे हलन्त' मसला है। म हल है! घर में ही सब रहते हैं। पुर में नहीं । झरते लिखने में श्रा मिलता है। पहले अलग कर के हज अतलाते हैं। फिर कहते है कि या मिला। सही नछ, संस्कृत के 'जल पवन आदि शन्दों को से को हिन्दी में इलन्' बतलाते हैं । इद गई जो हिन्दी नभम् 'अयम्' आदि के इल् (ब्यञ्जन ) को र 'म' तथा ' के रूप में अपना प्रातिपदिक स्वीकार करती है, उसी में प्रयुद्ध संस्कृत के जल'