पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३१

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संक्षिप्त, प्रथम, मध्य आदि---में प्रकाशित हुए। अभी इसका अनुवाद रूसी भाषा में भी हो गया है। | गुरु जी के व्याकरण छुपने के बाद से हिंदी की स्थिति में अनेक महत्व- पूर्ण परिवर्तन हुए। सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि हिंदी को विश्व- विश्वविद्यालयों की सर्वोच्च परीक्षा के लिये एक विषय रूप में स्वीकृत किया गया और काशी तथा प्रयाग में विश्वविद्यालय की बी० ए० तथा एम० ए० परीक्षा के लिये पाठ्यक्रम बने और हिंदी-विभागों की स्थापना हुई। ऊँची कक्षा के छात्र भाषा-शास्त्र का अध्ययन करने लगे और साथ ही व्याकरण का ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन प्रारंभ हो गया । साहित्य की अन्य रचनाओं के साथ ही हिंदी में भी भाषा-विज्ञान संबंधी पुस्तकें लिखी जाने लगीं । कुछ दिन बाद हिंदी भाषा और साहित्य में शोध का कार्य होने लगा तथा हिंदी की भिन्न-भिन्न बोलियों का भाषा वैज्ञानिक विस्तृत अध्ययन प्रारंभ हो गया । सीटी ने राजस्थानी का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन पहले ही प्रस्तुत किया था । डा बाबूराम सक्सेना ने १६.३२ में अवघी का एक विस्तृत भाषा वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत कर प्रयाग विश्वविद्यालय से डी० लिट्० की उपाधि प्राप्त की । डा० धीरेंद्र वर्मा ने ब्रजभाषा का वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया। फिर तो लहँदा, पंजाबी, भोजपुरी, खड़ी बोली का भी इसी प्रकार गंभीर गवेषणात्मक अध्ययन प्रारंभ हो गया और हिंदी के पाठकों में हिंदी व्याकरण के संबंध में जिज्ञासा निरंतर बढ़ती ही दाई । । दूसरी ओर भारत की राजनीतिक एकता के लिये अंतःप्रांतीय व्यवहार के लिये एक भाषा के माध्यम की आवश्यकता का अनुभव राजनीतिक और सामाजिक नेता करने लगे थे और सर्वसंमति से हिंदी को इस गौरवपूर्ण पद के लिये स्वीकार किया गया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में हिंदी को राष्ट्र भाषा को पद मिला और अहिंदी-भाषी क्षेत्र में हिंदी प्रचार के लिये प्रयत्न प्रारंभ हुए। पहले दक्षिण प्रचार सभा' द्वारा दक्षिण भारत में हिंदी का प्रचार किया गया, पीछे वर्धा में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति' की स्थापना सं० १६६३ ( १६३६ ई० ) में हुई और उसकी शाखाएँ देश के भिन्न-भिन्न प्रातों में स्थापित कर हिंदी सिखाने का कार्य प्रारंभ हुआ। अहिंदी-भाषियों को हिंदी सीखने में हिंदी व्याकरी के कुछ नियमों को लेकर उलझनें उपस्थित हुई और उन उलझनों को लेकर भी हिंदी व्याकरण की विशेष चर्चा प्रारंभ हो गई ।