पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३२

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( १३ ) सब मिलाकर पिछले दश वर्षों से हिंदी के एक नए व्याकरण की श्रावश्यकता का अनुभव होने लग गया । स्वतंत्र भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा मान लिये जाने के पश्चात् केंद्रीय सरकार भी हिंदी का व्याकरण प्रस्तुत करने के लिये प्रयत्नशील हो उठी और उसने एक समिति का निर्माण भी कर दिया। परंतु कुछ कारणों से उस समिति की कार्य अग्रसर न हो सका और समिति अपने आप भंग हो गई। नागरी प्रचारिणी सभा की हीरक जयंती सं० २०११ (मार्च १९५४ ई०) में मनाई गई। हीरक जयंती के पश्चात् सभा ने हिंदी के प्रकाशन के संबंध में कई योजनाएँ कार्यान्वित करने का निश्चय किया | हिन्दी शब्दसागर के संशोधन तथा हिंदी साहित्य के वृहत् इतिहास की योजना पर विचार हो रहा था। उसी समय सभा के परम श्रदरणीय सभापति क्व ० ० अमरनाथ झा ने सभा की प्रबंध-समिति को सुझाव दिया कि पं० किशोरीदास वाजपेयी से हिंदी शब्दसागर के संशोधन अथवा व्याकरण-निर्माण का कार्य लिया जाय । पं० किशोरीदास वाजपेयी पिछले पचीस-तीस वर्षों से हिंदी व्याकरण के संबंध में गंभीर विचार करते रहे हैं और पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख भी छपते रहे हैं । सन् १९४२ में उन्होंने ‘ब्रजभाषा का व्याकरण” लिखकर अपने गंभीर अध्ययन और मौलिक चिंतन का परिचय हिंदी संसार को कराया और १६४८ में राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण' लिखकर उन्होंने न केवल राष्ट्रभाषा का व्याकरण ही लिखा वरन् नए हिंदी व्याकरण के निर्माण की भूमिका प्रस्तुत कर दी । वाजपेयी जी की पिछली सेवाएँ और उनकी अनुपम सूझ-बूझ तथा चिंतन-मनन को ध्यान में रखते हुए २४ सितंबर १९५४ को सभी की साहित्योपसमिति ने उनसे एक सुविचारित थोजनानुसार हिंदी व्याकरण का निर्माण कराने का निश्चय किया। प्रस्तावित व्याकरण की सामान्य रूपरेखा का निर्धार करने के लिये एक मंडल संघटित किया गया जिसके सदस्य श्री कृष्णानंद, श्री करुणापति त्रिपाठी, श्री विश्वनाथ- प्रसाद मिश्र, डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी और श्री चंद्रबली पांडेय मनोनीत हुए। श्री करुणापति त्रिपाठी संयोजक बनाए गए हैं। | १५ अक्तूबर १९५४ को संभा के व्याकरण योजना-मंडल ने निम्नांकित तीन प्रस्ताव रखे । ( १ ) श्री पं० किशोरीदास जी वाजपेयी को सूचित किया जाय कि प्रस्ता- वित व्याकरण लगभग ६०० पृष्ठ ( डबल डिमाई सोलह पेजी ) का हो ।