| कभी-कभी ऐसा होता हैं कि किसी अति प्राचीन शब्द भी व्युत्पछि भूल
कर लोग उसे रूद्ध शब्द समझ लेते हैं और फिर केई विद्वान् उस शब्द का
ऐसा चोगार्थ प्रकट करता है कि लोग उसे मान लेते हैं-उस शब्द को
योकि समझने लगते हैं-इस नई व्युत्पत्ति के कारण है - शैले
ब्दों की व्युत्पचिं कई तरह से निकाचार्य करते हैं । फिर इन में से जो भी
-उद्दीत हो जाए। महर्षि वाक ने अपने निरुफ' में लिखा है कि ऐसे
दुरूह शब्दों की व्युत्पचि जितनी भी तरह से समझ में झाडू. प्रकट कर देनी
चाहिए। उन का मतलब यह कि 'न्ज हुई हैं हैं । * ने फोन सही हो ।
दार्थ को दृष्टि से व्याक ॐ ॐदन्द, तद्धि तथा मासु नाम के संद
प्रमुख हुन्। २ले द्ध हैं। यानी शब्द ः त्यस त्रिभ्रा भाव है ! ५३
के इस अन्तिम अध्याय में इस इन त हैं एक छा ग् है दलल
करेंगे, जिससे हिन्दी का स्वरूप-गठन ता ये-प्रयोग स्पष्ट में जाए ।
पिछले अध्यायों में शब्दों की जिन श्रेणिय छा उन्ट हुई, वे सत्र
दन्त, तद्धित सुथा सुमास ले लिड हैं। इé लिए उनके बाद । र
किया-प्रकरण प्रारम्भ करने से पहले अरु ६ रखा गया है ।
भाषा में ‘कृदन्त प्रकरण की जड़ का है। झन्' तथा द्धित
ब्द हिन्दी-ब्यार में रू' शब्द के रूप में ही हैं। ३ मंस्त-
व्यापाई
के शब्द हैं । वहाँ ये यौगिक्र' शब्द हैं । परन्तु हिन्दी में कृ’ जै? कोई
दी गई है। इस ज़िए, यहाँ यई छ इब्द है-उ* अर्थ ॐ । बस
संज्ञा या विशेष आदि में किसी क्लियर (नु’ ) को ६ इक मरता हो,
उसे दन्तशब्द कहते हैं ।
दन् र यन्त इव का इस लिं, हैं कि शिक्ष; आई
है तो इस हा सम्बन्ध है ई; ईन्दी के क्रिया-करगा में भी इसी अवञ्चिक
सञ्ज हैं। हिन्दः ॐ ॐक क्रियापद इंदन्त हैं, बहुत कम *ति-त ।
संस्कृत में तिङन्त क्रिया की प्रधानता है, हिन्दी में कुदन्त की कार का
हैं । । देखा जाता है कि श्रद-ब-इले र ‘ङ टु ’
तथा ‘उन्नन्त' जैसी प्रक्रिया का हाल होता गया है और रात को जोर
दृढ़ता गया हैं। चंद-45 इ० को अनुनि श्र से यह बात प्रष्ट ।
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