पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३१४

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कभी-कभी हिन्दी की भाववाचक कृदन्त पुं० संज्ञाएँ पुविभक्ति के मिंना भी रहती हैं। खाना-पीना सच समझते हैं; परन्तु विय-अञ्च में खान-पान रहा है। उनका खान-पान में कुछ हुँचता नहीं हैं। यह संस्कृत का तदूध पान' शब्द है ; इस लिइ विन्द ने अपनी पुंत्रिभक्ति नहीं लगाई । ‘ान' के इथि मेज़ के लिए अपने खा' से भी पुंत्रिभक्तिः अल कर ली... ‘खान-न' । 'अपनी धानु ।' से भाववाचक संज्ञा पीना हैं हां ।। हमने

  • र' के साथ 'ना' को जा’ कर लेने की बात कही है; परन्तु संस्कृत के

बड़े फैश-ग्रन्थों में खान- पान” संस्कृत श६ मा ई-संस्कृत खाद से खान’ सदा हैखाने-जदम् } । “हान' भी इसं तरह अर्थ-भेद में हैं---‘ना कब पर ?' । साधार; 'नाना' पृथक है । #r तरह मिलना' र 'मिलन' में अन्दर है । युविभक्तिः ला कर या क्लाज छर के अर्थ- किन पुट करने की पद्ध िहिन्दी में हैं। * विधेयक इण हैं-चुन कपए खर्च हो ग’ ! इनमें ‘अ’ हा कर दिय व प्रकट कर लिया---'क्या क्यचा पड़ा ?? 'न' के अतिरिक्त अन्य दन्त--प्रत्यय भी भाष' प्रश्ट करने के लिए आते हैं; परन्तु अर्थभेद के लिए हैं। अहव' । अह' नु से ग्रा' प्रत्यय है। जल का अहा दानी प्रह ! 'बहुदा रा हैं--प्रवृश' इर्स तरह चढ़ाव-उतराव दे हैं। ढाई-उतराई’ मैं ड्राई' भाज-ग्रन्थ हैं। चढ़।'-उतरना भी भाववाचक संज्ञाएँ हैं, अर्थ-सामान्य में । न' प्रत्यु हिन्दी में ‘अ. भी होता है-'तीन-चार अच्छे ने सुने । यहाँ ‘भाना न भावाचक नहीं है; नहीं ते ने' बहुवचन न इद्धा, तीन-चार दिनु भ में लाता । अहँ '२१ ॐ = *-धन है-- । पञ्च { } गाथा ३, ६ शान-१३१ } र ३. ६ गा। भावक सं? । भी चलने में * एगी ---सुन्न । न्। नुना; दर ३६ अालिका वा ना सुन से वाइ रहा ।' य न्तु वाचक संज्ञा है ! इसी तरह 'खाना र अरह-तरह के खाने बनाने में सुला नि नुहु है। वहाँ स्ना' में 'न' प्रत्यय कर्म-प्रधान है--वाई जाने वाली चीज

  • खाना’ | भवादक 'ना' सदा एफव वन रहेगा---'खाना-विर * अचे

को नहीं आता है।