पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३१५

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भाववाचक संज्ञाएँ 'न्त’ स्त्रीलिङ्ग प्रत्यय से भी बनती हैं---भिड़न्त, रटन्त अादि । प्रत्यय-हित भाववाचक संज्ञाएँ भी स्त्रीलिङ्ग होती हैं- देख-रेख, देख-भाल, लूट, चमक, दौड़, सँभाले आदि । पुंविभक्ति नहीं लगं; क्योंकि 'देखा-भाला” तथा “लूटा’ ‘न्चमका' आदि शब्दान्तर अर्थ- त्रि में विद्यमान हैं। कहीं-कहीं पुल्लिङ्ग में भी पुंविभक्ति नहीं लगती है, अर्थ-विशेष अब प्रकट करना हो; यह कहा ही जा चुका है-'लगान' । कर्म-प्रधान न’ है। जो ( भूमि-कर ) लगाया जाए, शासन के द्वारा, वह 'लगान' । भाव- बाचक संज्ञा लगाना है। संस्कृत में ‘न' ('अन' ) प्रत्यय भवि' के अतिरिक्त करण तथा अघि- करश में भी होता है और तब वह पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग रूप में वचनभेद भी अइण करता है। हिन्दी में भी ‘न' वैसा ही है । छननी-जिस से आटा छाना जाता है, वह ‘छननी । जिस से सेव या बूंदी झारी जाती हैं, वह झारा'। झारा में श्रा' ('करण' में ) कृदन्त प्रत्यय है। झरना अलग चीध हैं । पर्वत से झर-झर कर निकलने वाला जल-स्रोत “झरना' कहलाता है । झर झर कर-रस-रस कर)-बहने वाला प्रवाह ‘झरना' । यों यह ‘न' प्रत्यय कृतृ-प्रधान हुआ । झरना' एक क्रिया है, जो शब्दानुकरण को ले कर बनी है। ऊपर से गिरने वाला जल-स्रोत ‘झर झर' जैसा शब्द करता है और जल प्राय; कई-कई छिद्रों से निकलता है । इस लिए झर-झर शब्द कर के निकलने वाला ‘झरना' । इसी सादृश्य से झारा भी हैं, करण- प्रधान । झरना' स्वयं करता है। कैदी' तद्धित शब्द है। कैंच’ जिस चीज में हो, वह कैथी । परन्तु कुतरनी' कृदन्त शब्द है, कार-प्रधान । जिस से कृपट्टा आदि कतरा जाए, वह कृतरन'। ‘कढ़ना' एक क्रिया है। आग से किसी पदार्थ का ( जलीय अंश जल कर ) गाढ़ा होना । ‘दूध कढ़ रहा है । झड़ना-(क्वथनम्) आँटना । लोई के विस खुले बर्तन में दूध श्रादिः कढ़ता- औता है, वह कड़ाई' । कढ़' धातु से अधिकरण-प्रधान “आई” कृदन्त अल्युम् । जो खूब कढ़ कर तयार हो, वह 'कढी । यहाँ कढ़' धातु से कर्म ४ान 'ई' ;त्यय है । प्रकृति के 'अ' का लोप स्पष्ट है। हमारे कानपुर की और कड़ाही छोलते हैं, कढ़ाई नहीं । 'कृढ़ाई भाववाचक संज्ञा दूसरी