पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३१६

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है-“कसीदे की कड़ाई । यदि कड़ाही' शब्द रखें, तो फिर कृदन्त नहीं, तद्धित-शव्द रहे गा । इस बर्तन में दोनो ओर दो कड़े लगे होते हैं, पकड़ कर उठाने के लिए। तो, जिस बर्तन में ‘कड़े लगे हों, वह कड़ाही । यी ‘कड़ा' से कड़ाईं तद्धित-शब्द हुआ। अब श्राप इस पर सोचना चाहें कि इन दोनो शब्दों में सही कौन है, तो फिर इसी का रूपान्तर देखना है। गा--‘कुड़ाई। बड़ी कड़ाही को कड़ाह' कहते हैं। कदाचित मूल शब्द कड़ाह’ ही हो । छोटा कड़ाह कड़ाही'। यदि मूल शब्द ‘कड़ाही होता और 'बड़े अर्थ में दूसरा शब्द बना होता, तो कड़ाहा' शब्द होता; जैसे गाड़ा, धोता, पोथा अादि । सो, मूल शब्द ‘कड़ाह' । कड़ा से तद्धित प्रत्यये 'इ' | छोटी कड़ाह कड़ाही' । अल्पर्थिक स्त्री-प्रत्यय 'ई' । संस्कृत के

  • काह' शब्द का विकास कड़ाह; यह निरुक्तीय पद्धति है। संस्कृत का

कटाह” भी कदाचित् यौगिक ही हो और कट' कः वही अर्थ होता हो, जो हिन्दी में कड़ा' शब्द का है। संभव है, इस ‘क’ से अल्पार्यक्र ‘क’ प्रत्यय कर के ही कटक' ( ‘वलय' को पृथ्थय) बना हो। यह भी संभव है कि उसी क्र का विकास हिन्दी का कड़ा हो ! परन्तु कट्टा' के अर्थ में संस्कृत ‘कट' का प्रयोग मुझे कहीं देखने को मिला नहीं है। यह प्रासंगिक चचा । 'निकम्मा भी यौगिक शब्द है; पर नि' सामासिक हैं । “कम्म’-काम जिसे कोई न्? हो, वह निकम्मा-ठलुझा ! इस का साथी 'निवडू' शब्द कुदन्त है। लुटना क्रिया कमाने के अर्थ में पंजाबी भाइयों में प्रसिद्ध है । भाववाचक संज्ञा तो खरना' बन जाती है। परन्तु मूल धातु पंजाबी में *स्वट्ट है। इसी ‘ख’ में हिन्दी ने अपना *नि' उपसर्ग और ऊ' कृदन्त ( कर्तृ- प्रधान ) प्रत्यय ला कर निखट्ट' शब्द बना लिया है न कमाने वाला भनिस् । यह अचरज की बात है कि पंजाब में ‘ख’ घातु कमाने के अर्थ में चलती है; पर ‘नि,' शब्द वह नहीं चलता और हिन्दी-प्रदेशों में स्वद्ध धातु प्रचलित न: पर निलुई शब्द खूब चलता है। इस से ! घar हैं कि किसी समय एक ऐसी प्राकृत-भाधा थी, हो कि उत्तर भारत में हिमालय के साथ-साथ बहुत दूर तक प्रचलित रही हो गी । कालान्तर में उस के रूपान्तर हो रा; परन्तु सट्ट' तथा 'निखट्ट' जैसे शब्द अब भी उस करूपता की याद दिलाते हैं। पहले भी ऐसा होता रहा हैं । महुलिं वास्क के समय में कम्बोडिया क र ‘शुब' घालु ज्ञाने के अर्थ में चल थी । ‘शव-गच्छति । इरन्तु इस ओर शव' ( उस धातु कई कृदन्त रूप } मुर्दै के लिए, बना लिया; दन शवति छात्रः जैसे प्रयोग । अमंगल-व्यंबक समझ