पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३१७

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हर } छोड़ दिए गए। यस्क है ‘निरुल' में यह सब लिखा है। यानी किसी एक ही भाषा के किसी शब्द का कोई रूप कहीं चलता है, दूसरा कहीं लता है । कएर हुने 'निकम्मा' शब्द ‘सामासिक' बतलाया है। परन्तु यद् कृदन्त भी हो सकता है---‘निषद्' की ही तरह । “कसान' हिन्दी की क्रिया है-- अर्जन' या लटने के अर्थ में । बड़ी सार्थक क्रिया है । 'काम' कर के ही क्लोई कुछ काम सकता है । प्रर्बन' वही उत्तम, जो परिश्रम से हो, काम कर के हो । यू *र्जन' तथा 'खटने से ‘कनाने में विशेषता है । इसी ‘म’ इदु से निकन्स’ हैं, जिसकी कोई ‘इन-कल' न हो ! 'नि’ उपसर्ग र श्रा' कृदन्त इत्यय लग्न कर-निकम्मा । पर कमा' नामधातु जान पडती हैं । 'काम' नाम से धानु’ ‘नामधनु' । घास कर के ही कुछ केसाय जाता है ! तब निकम्म' शब्द में उभयथा एक ही चीज है ।। इसी तरह यौशिक शब्द में प्रक्रिय-विवार अपेक्षित है । कोई शब्द कृदन्त होगा, कोई तद्धितान्त और कोई समस्त' ।। | कभी भी क्रिसी प्रसिद्ध रूढ़ शब्द में कोई नए योगार्थ की कल्पना कर देता हैं । यदि इस कल्पना को लभ मान लें, तो फिर वह शब्द ‘यौगिक बन जाता हैं ! अम्न' से 'अम’ बना । रूद्र शब्द हैं । परन्तु गरीव-अमीर सभी इस फल का स्वाद लेते हैं । आम जनता का यह फल है, इस लिए

  • श्रम' हा जाए, तो यौगिक हो जाए गरे । मैंने इसी तरह बाबू’ तथा

ल्लालः ॐ शब्दों की व्युत्पत्ति-कल्पना प्रकट की और उसे लोग मानने लगे ६ ! “ला, ' जो करत रहे, वह ‘लाला' । कृदन्त शब्द । “बू-अभिमान { फार ३ } और ‘बा' ! थं सहित'; जैसे “ब-इल्म’। हे साधारण स्थिरि के आदमी कुर्सी पर बैठ र बेजा अकड़े फिरें, ३ 'बाबु' । यह व्युत्पत्ति १९४५ में प्रयाश के अम्युदय में मैं ने छपाई, तो कई लोग बिगड़ बैठे थे ! कारभर, उस समय हम लोय राजर्षि टंडन को भी बाबू जी' ही कहते थे; अन्न : कते हैं। इस से क्या ! “अन्ग्रद्धि शब्दानां व्युत्पत्तिनिमित्तमन्य- पशुचिनिमित्तम्--- ॐ की व्युत्पत्ति का कारण कुछ होता है और प्रवृत्ति { चलन ) का कारण कुछ दूसरा ही होता है। उस व्युत्पत्ति को इन में ख ६ इह लो राजथि को 'बू जी' नहीं कहते हैं। यहाँ इङ प्रदि का निमित्त दुसरा हैं---दर-प्रकटन । ऐसी दशा में ऐसे लोगों